Uttarakhand CM: पूर्व सीएम एवं भाजपा के दिग्गज नेता के बेटे को भी बड़ी मात दे चुके हैं नये CM तीरथ सिंह रावत

डीएन ब्यूरो

उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री बनाये गये तीरथ सिंह रावत एक जमीनी नेता और इस पद पर पहुंचने तक वे कई राजनैतिक संघर्ष देख चुके हैं। पढिये, डाइनामाइट न्यूज की पूरी रिपोर्ट

नये सीएम का स्वागत करते पुराने सीएम व अन्य नेता
नये सीएम का स्वागत करते पुराने सीएम व अन्य नेता


देहरादून: आखिरकार कई नामों पर चर्चा और राजनीतिक अटकलों के बाद तीरथ सिंह रावत के रूप में उत्तराखंड को नया मुख्यमंत्री मिल गया है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उत्तराखंड के नये सीएम को लेकर जिन चार-पांच नामों पर राजनातिक गलियारों और मीडिया में चर्चा हो रही थी, उनमें तीरथ सिंह रावत का नाम शामिल नहीं था। लेकिन तीरथ सिंह रावत ने सरप्राइजिंग फैक्टर को जारी रखा और सीधे उत्तराखंड की सत्ता के शिखर पर विराजमान होकर हर तरह की अटकलों को खत्म कर दिया।   

एक सामान्य पार्टी कार्यकर्ता से उत्तराखंड के सीएम पद तक विराजमान होने का तीरथ सिंह रावत का सफर बेहद संघर्षपूर्ण और चुनौतियों से भरा रहा है। पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लाक के सीरों गांव के मूल निवासी तीरथ सिंह को आज भी एक जमीनी और लो-प्रोफाइल नेता के रूप में देखा जाता है। पौड़ी लोक सभा सीट से चुने जाने के बाद भले ही वे 2019 में दिल्ली पहुंचे हो लेकिन पहाड़ और वहां के लोगों की जरूरतों से भली भांति परिचित हैं। 

दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री की महत्पूर्ण जिम्मदारी संभालने और देश में स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के तहत हाइवे के जाल बिछाने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने भुवन चंद्र खंडूड़ी के बेटे मनीष खंडूड़ी के खिलाफ तीरथ सिंह रावत ने 2019 के लोक सभा चुनाव में तीन लाख वोटों से ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। मनीष खंडूड़ी अपने पिता की पारंपरिक सीट पौड़ी से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। हालांकि मनीष खुद अपने पिता का समर्थन भी भलीभांति हासिल नहीं था। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि मनीष के पिता भुवन चंद्र खंडूड़ी कट्टर भाजपा नेता और पार्टी के अनुशासित सिपाही रहे। लेकिन पिता के नाम पर उनको वोट मिलने और जीतने की पूरी संभावना बनी रही। ऐसे में तीरथ सिंह ने पौड़ी-गढ़वाल सीट पर एकतरफा जीत हासिल कर मनीष को 3 लाख वोटों के ऐतिहासिक अंतर से हराया था। 

गढवाल सीट से इसी बड़ी जीत के साथ तीरथ सिंह रावत का कद पार्टी में अप्रत्याशित तौर पर बढ गया। इसके अलावा उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के प्रभारी की जिम्मेदारी संभालकर तीरथ सिंह ने वहां चारों लोकसभा सीटें जिताकर पार्टी में खुद के कद को और मजबूत किया। 

महज 20 साल की उम्र में वर्ष 1983 में संघ के प्रांत प्रचारक का जिम्मा संभालने वाले तीरथ सिंह रावत ने अपने सफर में कई अहम जिम्मेदारियां निभाई। उत्तराखंड राज्य की स्थापना के साथ ही वर्ष 2000 में वे जब राज्य के प्रथम शिक्षा मंत्री चुने गए तो, यह साफ हो गया कि राज्य की राजनीति में उनका कद बेहद बड़ा है, जो आगे चलकर सीएम की कुर्सी तक पहुंच सकता है।  
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री, विधायक, पार्टी के राष्ट्रीय सचिव, लोक सभा सांसद के अलावा उनके मुख्यमंत्री चुने जाने के पीछे उनका राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक समेत संघ में लंबे समय तक काम करना भी बड़ा कारण है। इसका साफ मतलब है कि उन्हें संघ का भी पूरा समर्थन प्राप्त है। 

अब सबसे बड़े सवाल यह हैं कि लंबे संघर्ष के बाद उत्तराखंड की सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हो रहे तीरथ सिंह रावत क्या पार्टी नेताओं और राज्य की जनभावनाओं पर खरा उतर सकेंगे? 










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