बाघिन त्रुशा से बच्चे सिख रहे नये-नये दांव-पेंच
कानपुर के चिड़ियाघर में बाघिन त्रुशा तीन माह के बच्चों के साथ अठखेलियां करती नज़र आई। साथ ही वो इस दौरान बच्चों को जीवन शैली के दांव पेच सिखाते हुए दिखाई दी।
कानपुर: यूपी के कानपुर के चिड़ियाघर में बाघिन त्रुशा से तीन माह पहले जन्मे 4 शावकों को बुधवार को छोटे बाड़े से निकाल कर बड़े बाड़े में शिफ्ट किया गया। जहां बाघिन त्रुशा ने अपने शावकों को जीवन शैली के दांव सिखाए। इस दौरान शावक भी अपनी मां के साथ अठखेलियां करते नज़र आये। इधर उधर उछल कूद मचाए ये शावक मां से किस तरह से अपने जीवन जीने की दिनचर्या सीख रहे हैं। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है।
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आखिर माँ तो माँ ही होती है
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कानपुर के चिड़ियाघर में बाघिन त्रुशा को साल 2010 में यहां लाया गया था। जिसमें बाघिन त्रुशा अब तक 4 बार मां बन चुकी है। वहीं अब तक बाघिन त्रुशा ने 13 बच्चों को जन्म दिया है। अब तक बाघिन त्रुशा से जन्मे कुछ बच्चों को अलग राज्यों के चिड़ियाघर में भी भेजा जा चुका है। वहीं तीन माह पहले ही बाघिन त्रुशा ने एक बार फिर 4 शावकों को जन्म दिया और तीन महीने छोटे बाड़े में रहने के बाद बुधवार को इन शावकों को बड़े बाड़े में मां त्रुशा के साथ छोड़ दिया गया।
तस्वीरों में देखा जा सकता है कि बड़े बाड़े में ये शावक मां के साथ उछल कूद मचाये हुए है वहीं मां त्रुशा भी इन शावकों की हरकत को देख कर शावकों के साथ खेलते नज़र आई। शावकों को जीवन शैली के दांव पेंच सिखाती हुई बाघिन त्रुशा किस तरह दौड़ दौड़ कर शावकों को जीवन शैली सिखा रही है। वहीं शावक भी अपने आप मे मदमस्त होकर कही रस्सी पकड़ कर झूला झूल रहे तो कही एक दूसरे से लड़ते और फुटबाल खेलते नज़र आये। इस दौरान कही शावक अपनी मां त्रुशा के ऊपर चढ़ जाए तो कही त्रुशा के पीछे पीछे भागने में लग जाए। एक बाघिन और उसके शावकों का इस कदर प्यार देख कर यहां रहने वाले कर्मचारी भी रोमांचित हो उठते हैं।
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मां दुर्गा की सवारी की सेवा करने से धन्य हो गए
सन 1976 से कानपुर चिड़ियाघर की सेवा कर रहे रमेश चन्द्र कीपर ने बताया कि ये बाघिन त्रुशा को गुजरात के जूनागढ़ से 2010 में लाया गया था। तबसे लेकर ये 4 बार मां बन चुकी है और 13 शावकों को अब तक जन्म दे चुकी है। जिनमें कुछ जन्मे शावकों को छत्तीसगढ़, रायपुर, व चंडीगढ़ भेज दिया गया है। उन्होंने बताया कि तीन महीने पहले जन्मे ये शावक अपनी मां बाघिन त्रुशा के साथ वैसे ही रहते है जैसे एक मां अपने बच्चों के साथ रहती है। बाघिन त्रुशा भी इनका बहुत ध्यान रखती है। यहां पर हम इनकी साफ सफाई से लेकर खाने पीने तक का ध्यान रखते हैं।
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कीपर ने बताया कि खाने में इन शावकों और त्रुशा को डेढ़ किलो दूध, 2 कच्चे अंडे, कैल्शियम, 6 किलो मुर्गा दिया जाता है। बाघिन त्रुशा अपने शावकों को बड़े ही प्यार से रखती है और ये बाहर बाड़े में बच्चो को ले जाकर दौड़ना सिखाती है। वही 15 अगस्त को इस बाड़े को आम पब्लिक के लिए खोल दिया जाएगा। कीपर ने कहा कि ये हमारा परम सौभाग्य ही है जो हमे माँ दुर्गा जी की सवारी की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं।