प्रसिद्ध शाही लीची के उत्पादन का हब बना बलिया का नीरूपुर गांव
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के निरूपुर गांव के किसान बड़े पैमाने पर शाही लीची उगा रहे हैं, जिसकी देश के दूसरे राज्यों में भी आपूर्ति की जा रही है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
बलिया: पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के निरूपुर गांव के किसान बड़े पैमाने पर शाही लीची उगा रहे हैं, जिसकी देश के दूसरे राज्यों में भी आपूर्ति की जा रही है।
जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर स्थित निरूपुर गांव प्रसिद्ध शाही लीची की उच्च गुणवत्ता वाली फसल के उत्पादन का केंद्र बन गया है। रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) से सेवानिवृत्त अधिकारी राजा शंकर तिवारी (78) ने उच्च गुणवत्ता वाली शाही लीची का उत्पादन कर निरूपुर गांव को सुर्खियों में ला दिया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार निरूपुर में लीची की खेती की शुरुआत करने वाले तिवारी ने कहा, “मैंने सेवानिवृत्ति के बाद कहीं पढ़ा कि लीची का एक पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में लगभग 90 लाख रुपये की कमाई कराता है। इसके बाद, मैंने 2013 में लीची की खेती शुरू की।”
उन्होंने बताया, “तब से पेड़ों की तरफ मेरा रुझान बढ़ा और सेवानिवृत्त होने के बाद मैं मुजफ्फरपुर गया और लीची रिसर्च सेंटर में लीची की बागवानी सीखी। इसके बाद, अपने गांव के दोपाही मौजा में दो हेक्टेयर जमीन में शाही लीची के 230 पेड़ और आम के 200 पेड़ लगाए।”
निरूपुर और आसपास के गांवों के कुछ अन्य किसानों ने तिवारी का अनुकरण किया और खुद को उस क्षेत्र में लीची उगाने के लिए समर्पित कर दिया। यह इलाका पहले परंपरागत रूप से फल उत्पादन के लिए नहीं जाना जाता था। दशक भर के प्रयासों के परिणामस्वरूप क्षेत्र में लीची की अच्छी उपज हुई और अब यह सबकी निगाहों में आ गया है।
तिवारी ने कहा, “इस साल हमारे खेत में आठ टन लीची पैदा होने की उम्मीद है। लीची की अच्छी उपज के अलावा, खेत ग्रामीणों को रोजगार भी प्रदान करते हैं और एक वैकल्पिक आय का स्रोत हैं। फलने और कटाई के मौसम के दौरान लगभग छह महीने तक ग्रामीणों को श्रमिकों के रूप में काम पर रखा जाता है।”
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तिवारी ने बताया कि उनके खेत में 30 से अधिक ग्रामीण काम करते हैं और उनके वेतन पर हर महीने डेढ़ लाख रुपये से अधिक खर्च हो जाते हैं।
पड़ोस के पिंडारी गांव के मुन्नन पिछले कई वर्षों से लीची की खेती से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि लीची की खेती के कारण उन्हें और तकरीबन 35 अन्य लोगों को अपने गांव में ही रोजगार उपलब्ध हो जा रहा है।
मुन्नन ने बताया कि लीची की खेती कराने वाले उन्हें रोजाना के नाश्ते और दोपहर के खाने के अलावा दस हजार रुपये प्रति माह वेतन देते हैं।
तिवारी ने बताया कि पहले गांव की लीची और आम स्थानीय बाजार में ही बिकते थे, जिस कारण मुनाफा कम होता था।
उन्होंने कहा, “पिछले तीन वर्षों में हमने लीची को राज्य के बाहर के बाजारों में बेचना शुरू किया है। इससे हमें अपनी उपज की अच्छी कीमत मिलने लगती है। अभी तक हमने ट्रेन से मुंबई, दिल्ली और नासिक के बाजारों में लीची के पैकेट भेजे हैं।”
तिवारी ने बताया कि चेन्नई में बने कार्टून में पैक करके लीची की खेप ट्रेन से मुंबई, दिल्ली और नासिक भेजी जा रही है। उन्होंने कहा कि दुबई के लीची व्यापारियों से भी बात हुई है, लेकिन अभी उनके पास निर्यात करने के लिए लाइसेंस नहीं है।
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तिवारी ने कहा, “निर्यात लाइसेंस मिलने पर बलिया की लीची देश से बाहर भी जाने लगेगी। इससे स्थानीय बाजार में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। देश में लीची के औने-पौने दाम मिल रहे हैं, जबकि वर्तमान समय में दुबई के बाजार में इसकी कीमत काफी अच्छी है।”
उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि हम दुबई के बाजारों में चार से पांच गुना ज्यादा कीमत में अपनी लीची का निर्यात कर सकेंगे।”
सामने आने वाली समस्या के बारे में किसानों ने कहा कि बलिया में लंबी दूरी की परिवहन सुविधाओं की कमी से उनके व्यवसाय पर असर पड़ रहा है। लीची के अलावा, क्षेत्र के किसान लंगड़ा, दशहरी और चौसा आम भी उगाते हैं।
जिलाधिकारी रविंद्र कुमार ने कहा, “निरूपुर के किसान राजा शंकर तिवारी अच्छा काम कर रहे हैं। उन्हें सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिले और किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो, इसके लिए प्रशासन उनके साथ है। प्रशासन तिवारी को प्रोत्साहित करेगा।”