

तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च नेता और विश्व शांति के प्रतीक 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का उत्तराधिकारी कौन बनेगा। यह एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक सवाल बन चुका है। इस सवाल का उत्तर सीधे तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपरा और चीन के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से जुड़ा हुआ है।
धर्म गुरू दलाई लामा (फाइल फोटो)
New Delhi News: दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपराओं के अनुरूप पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित होता है। जैसे ही दलाई लामा का निधन होता है, उनकी आत्मा एक नवजात शिशु में पुनर्जन्म लेती है। इसके बाद वरिष्ठ लामाओं और धार्मिक नेताओं की एक समिति उस बच्चे को खोजने का कार्य करती है। चीन की बढ़ती राजनीतिक पकड़ और तिब्बत पर उसके कब्जे के बाद, यह चयन प्रक्रिया और भी अधिक जटिल हो गई है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, चीनी सरकार ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने का अपना अधिकार सुरक्षित किया है। जिससे तिब्बती समुदाय के बीच एक नया विवाद उत्पन्न हो गया है। चीन का कहना है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में दखल देगा, जबकि तिब्बती समुदाय इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन मानता है।
पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित चयन प्रक्रिया
तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार, दलाई लामा का उत्तराधिकारी उनके पुनर्जन्म से चुना जाता है। जब 14वें दलाई लामा का निधन होगा, तो उनकी आत्मा एक नवजात शिशु में प्रवेश करेगी। फिर, वरिष्ठ लामाओं की एक समिति, जो विशेष रूप से धार्मिक संकेतों और सपनों के आधार पर कार्य करती है, उस बच्चे का चयन करती है। इसके बाद उसे बौद्ध धर्म,तिब्बती संस्कृति और दर्शन की गहन शिक्षा दी जाती है। इस चयन प्रक्रिया में कुछ विशेष परीक्षण किए जाते हैं। जैसे, उस बच्चे को पहले से दलाई लामा के निजी वस्त्रों, माला या छड़ी को पहचानने का मौका दिया जाता है। इस प्रकार से उसे पहले से पहचाने गए संकेतों के आधार पर चुना जाता है।
‘स्वतंत्र दुनिया’ में होगा उत्तराधिकारी का जन्म
14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, ने हाल ही में यह संकेत दिया है कि उनका उत्तराधिकारी उनका जीवनकाल समाप्त होने से पहले ही चुना जा सकता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उनका उत्तराधिकारी "स्वतंत्र दुनिया" में पैदा होगा, जिसका मतलब है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र से बाहर, भारत जैसे स्वतंत्र देशों में जन्मेगा। यह घोषणा तिब्बतियों के लिए एक महत्वपूर्ण आश्वासन है कि चीनी सरकार उनके धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
गदेन फोड़्रांग ट्रस्ट और उत्तराधिकारी चयन की प्रक्रिया
गदेन फोड़्रांग ट्रस्ट, जिसे 2015 में स्थापित किया गया था, अब दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन का जिम्मा उठाएगा। यह ट्रस्ट तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों के परामर्श से उत्तराधिकारी की पहचान करेगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चयन प्रक्रिया पारंपरिक विधियों के तहत हो, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के। इस प्रक्रिया में धार्मिक नेता, भविष्यवाणी करने वाले संकेत और तिब्बती बौद्ध संस्थानों की सलाह भी शामिल होगी। गदेन फोड़्रांग ट्रस्ट के माध्यम से तिब्बती बौद्ध धर्म अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की कोशिश करेगा।
धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा
चीन तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वतंत्रता पर लगातार हमला कर रहा है। 1959 से, चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और तिब्बती बौद्ध धर्म की उच्चतम संस्थाओं में अपनी पसंद के नेताओं को नियुक्त किया है। उदाहरण के लिए, 1995 में, जब दलाई लामा ने 11वें पंचेन लामा के रूप में गेधुन चोएक्यी न्यिमा को मान्यता दी, तो चीन ने उसे हिरासत में ले लिया और अपने खुद के पंचेन लामा को स्थापित किया। चीन का दावा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार सिर्फ उसे है। उसने तिब्बत में धार्मिक गतिविधियों की नियंत्रित करने के लिए कई कानून बनाए हैं, जिसमें "गोल्डन अर्न" प्रक्रिया शामिल है, जो उसकी सहमति से ही दलाई लामा के उत्तराधिकारी को पहचानती है।
भारत और तिब्बती समुदाय की भूमिका
भारत, जो दलाई लामा और तिब्बती निर्वासित सरकार को 1959 से शरण दे रहा है, अब एक संवेदनशील स्थिति में है। अगर दलाई लामा का उत्तराधिकारी भारत में चुना जाता है, तो यह तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन को और बल दे सकता है, लेकिन यह भारत और चीन के बीच और अधिक तनाव पैदा कर सकता है। भारत में तिब्बती शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या है, और धर्मशाला, जो तिब्बती निर्वासित सरकार का केंद्र है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बन चुका है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों का समर्थन
अमेरिका ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में चीन के हस्तक्षेप का विरोध किया है। 2020 में, अमेरिका ने "तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम" पारित किया, जो चीन को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से रोकता है। अमेरिका का यह कदम न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वतंत्रता का समर्थन है, बल्कि यह चीन पर वैश्विक दबाव बनाने का भी एक तरीका है। अमेरिका और पश्चिमी देशों का समर्थन दलाई लामा की घोषणा को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।