राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद से पारित शांति 2025 विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिससे यह कानून बन गया है। इस नए कानून के तहत नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी संभव हो सकेगी और भारत की स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों को मजबूती मिलने की उम्मीद है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
New Delhi: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के शीतकालीन सत्र में पारित सतत परमाणु ऊर्जा दोहन एवं विकास (शांति) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही यह विधेयक अब औपचारिक रूप से कानून बन गया है। सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार राष्ट्रपति ने शनिवार को इस विधेयक पर हस्ताक्षर किए, जिससे भारत के नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक नए कानूनी युग की शुरुआत हो गई है।
संसद से पारित होने के बाद मिली स्वीकृति
केंद्र सरकार द्वारा नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सुधार के उद्देश्य से लाया गया यह विधेयक हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पारित हुआ था। संसद की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ ही यह कानून लागू हो गया है। सरकार का कहना है कि यह विधेयक भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।
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क्या है शांति 2025 विधेयक
शांति 2025 विधेयक का पूरा नाम सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया है। यह कानून भारत में नागरिक परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, उपयोग और नियमन के लिए एक नया और व्यापक वैधानिक ढांचा प्रदान करता है। इसके तहत परमाणु ऊर्जा को स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा के रूप में आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है।
पुराने कानून हुए निरस्त
इस विधेयक के लागू होने के साथ ही 1962 का एटॉमिक एनर्जी एक्ट और 2010 का सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट निरस्त हो गए हैं। सरकार का मानना है कि ये दोनों कानून अब तक नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के विकास में बाधा बने हुए थे। नए कानून के जरिए इन अड़चनों को दूर करने की कोशिश की गई है।
निजी कंपनियों के लिए खुले दरवाजे
शांति विधेयक के तहत अब निजी कंपनियां और संयुक्त उद्यम सरकार से लाइसेंस लेकर परमाणु बिजली संयंत्रों का निर्माण, संचालन और डी-कमीशनिंग कर सकेंगी। इससे पहले यह क्षेत्र मुख्य रूप से सरकारी नियंत्रण में था। सरकार को उम्मीद है कि इससे निजी निवेश बढ़ेगा और अत्याधुनिक तकनीक भारत में आएगी।
कुछ क्षेत्र अब भी सरकार के पास
हालांकि, सभी गतिविधियां निजी क्षेत्र के लिए नहीं खोली गई हैं। यूरेनियम और थोरियम की खनन, उनका उन्नयन, आइसोटोपिक पृथक्करण, खर्च हुए ईंधन का पुनःप्रसंस्करण, उच्च स्तर के रेडियोधर्मी कचरे का प्रबंधन और भारी जल का उत्पादन केवल केंद्र सरकार या सरकारी संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र में ही रहेगा।
सुरक्षा और रेडिएशन मानकों पर जोर
विधेयक में परमाणु ऊर्जा से जुड़ी सुरक्षा और रेडिएशन मानकों को लेकर भी स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं। इसमें पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। सरकार का कहना है कि नए नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होंगे।
भविष्य की ऊर्जा जरूरतों पर नजर
सरकार के अनुसार, परमाणु ऊर्जा भारत की स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों के लिए बेहद अहम है। जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डाटा सेंटर्स और औद्योगिक उत्पादन जैसी ऊर्जा-गहन तकनीकों की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्थिर और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है। शांति विधेयक को इसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।