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यहां के लोग नहीं करते रावण दहन, खुद को बताते हैं दशानन का वंशज, पढ़ें खास खबर

दशहरा पूरे देश में रावण दहन के रूप में मनाया जाता है, लेकिन गोधा श्रीमाली समाज दशहरे को शोक दिवस मानता है। यह समाज खुद को रावण का वंशज बताता है। रावण दहन के धुएं से स्नान और जनेऊ परिवर्तन की परंपरा निभाई जाती है।
Post Published By: Mayank Tawer
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यहां के लोग नहीं करते रावण दहन, खुद को बताते हैं दशानन का वंशज, पढ़ें खास खबर

Rajasthan: जब पूरे भारत में दशहरे के दिन असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक स्वरूप रावण दहन किया जाता है, तब राजस्थान के गोधा श्रीमाली समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं और रावण की पूजा करते हैं। यह समाज खुद को लंकेश्वर रावण का वंशज मानता है और दशहरे के दिन धुएं से स्नान कर जनेऊ बदलने की परंपरा निभाता है।

एक पर्व, लेकिन दो दृष्टिकोण

भारत में दशहरा को विजयदशमी भी कहा जाता है और इसे आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम द्वारा रावण का वध कर सीता माता की मुक्ति की कथा को रामलीला के माध्यम से देशभर में प्रदर्शित किया जाता है। शाम होते-होते रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं- यह प्रतीक होता है बुराई पर अच्छाई की जीत का।

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गोधा श्रीमाली समाज और रावण की विरासत

लेकिन वहीं, गोधा श्रीमाली समाज इस दिन को अपनी विरासत और पूर्वज की मृत्यु का दिन मानते हुए शोक दिवस के रूप में मनाता है। गोधा श्रीमाली समाज का मानना है कि वे रावण के वंशज हैं। मान्यता के अनुसार त्रेता युग में जब रावण का विवाह हुआ था, उसकी बारात जोधपुर के मंडोर पहुंची थी। वहीं उसकी शादी मंदोदरी से हुई और साथ आए गोधा परिवार के सदस्य वहीं बस गए। यही उनके रावण से वंशानुक्रमिक संबंध की जड़ें हैं। इस समाज के लोग दशहरे के दिन रावण दहन के धुएं से स्नान करते हैं, जनेऊ बदलते हैं और तब जाकर भोजन करते हैं।

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जोधपुर में रावण मंदिर

राजस्थान के सूरसागर स्थित मेहरानगढ़ किले की तलहटी में रावण का एक प्राचीन मंदिर भी है, जिसे कमलेश दवे नामक व्यक्ति ने बनवाया था, जो इसी समाज से ताल्लुक रखते हैं। इस मंदिर के पुजारी आज भी खुद को रावण का वंशज बताते हैं। उनका मानना है कि रावण कोई राक्षस नहीं था, बल्कि वेदों का ज्ञाता, बलशाली राजा और कला-संगीत प्रेमी था। इसी कारण, संगीत में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों को रावण का आशीर्वाद लेने की सलाह दी जाती है।

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