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DN Exclusive: हर साल पुतला जलाते हैं, लेकिन समाज के रावण का क्या… त्रेता में तो मर गया कलयुग का कब?

कहा जाता है कि रावण ने सीता का हरण तो किया लेकिन मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। बिना सीता की अनुमति, उन्हें स्पर्श तक नहीं किया। पर आज के दौर में हालात बिल्कुल उल्टे हैं।आज के रावण सिर्फ अपहरण तक नहीं रुकते...पढ़ें पूरी खबर
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DN Exclusive: हर साल पुतला जलाते हैं, लेकिन समाज के रावण का क्या… त्रेता में तो मर गया कलयुग का कब?

New Delhi: हर साल दशहरा पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। रावण के विशाल पुतलों को जलाकर हम बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं। लाखों लोग इस पल के साक्षी बनते हैं और मानते हैं कि रावण का अंत बुराई के अंत का प्रतीक है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि बाहरी रावण का दहन दहशरा पर तो हो गया। हमारे भीतर का रावण कब मरेगा?

ये रावण केवल अपहरण तक ही सीमित नहीं…

समाज और राष्ट्र में आज के रावण का चेहरा बेहद भयावह है। ये रावण न तो सोने की लंका में रहते हैं और न ही मुकुट धारण करते हैं। ये हमारे आस-पास ही दुबके रहते हैं, कभी रिश्तों के नाम पर, कभी दोस्ती के नाम पर, कभी विश्वास के नाम पर दिख जाएंगे। अब बात करें आज के रावण की तो अपहरण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि जघन्य  अपराध की पराकाष्ठा तक पहुँच जाते हैं।

क्या रावण को जलाने से समाज की बुराइयां खत्म होंगी?

ये मासूम बेटियों के साथ बलात्कार, हत्या और अत्याचार करते हैं। हर साल दशहरे पर हम ताली बजाते हैं और रावण का पुतला जलाते हैं, यह मानते हुए कि बुराई की हार हो गई है। लेकिन क्या यही हकीकत है? क्या बाहरी रावण को जलाने से समाज की बुराइयां खत्म हो जाएंगी?  या हमें अपने भीतर के रावण को पहचानने की ज़रूरत है, जो लोभ, क्रोध, अहंकार और वासना का प्रतीक है?

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बाहरी रावण को तो हमने जला दिया, अन्दर का कब?

ऐसे में आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि बाहरी रावण को तो हमने जला दिया, लेकिन असली रावण का क्या जो समाज को खोखला कर रहा है? वह रावण जिसकी वजह से बेटियाँ आज भी असुरक्षित हैं, परिवार आज भी चिंतित हैं और देश बार-बार शर्मसार होता है। इस दशहरे पर हमें सिर्फ़ पुतले ही नहीं जलाने चाहिए, बल्कि अपने भीतर के रावण का नाश करने का भी संकल्प लेना चाहिए। क्योंकि असली विजयादशमी तभी होगी जब समाज से क्रूरता के सारे निशान मिट जाएँगे।

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