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मुंबई लिटरेचर लाइव! के 16वें संस्करण में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और सांसद शशि थरूर ने संविधान की जीवंत भावना पर चर्चा की। दोनों ने अपनी नई पुस्तकों के ज़रिए संविधान की भूमिका, नैतिकता और सामाजिक समावेश पर विचार साझा किए।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और कांग्रेस सांसद व लेखक डॉ. शशि थरूर
Mumbai: मुंबई में आयोजित लिटरेचर लाइव! द मुंबई लिटफेस्ट के 16वें संस्करण में एक विशेष सत्र ने दर्शकों का ध्यान खींचा। सत्र का शीर्षक था “समानता, बंधुत्व, न्याय”। इसमें भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और कांग्रेस सांसद व लेखक डॉ. शशि थरूर ने भाग लिया। इस मौके पर उनकी दो नई पुस्तकों 'Why the Constitution Matters' (संविधान क्यों मायने रखता है) और 'Our Vibrant Constitution' (हमारा जीवंत संविधान: एक संक्षिप्त परिचय और टिप्पणी) का औपचारिक लोकार्पण हुआ।
डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बताया कि उनकी पुस्तक का उद्देश्य संविधान को सरल भाषा में आम लोगों तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि जब आप एक न्यायिक निर्णय लिखते हैं, तो आपके विचार सीमित हो जाते हैं। लेकिन किताब के ज़रिए मैं उन विचारों को विस्तार देना चाहता था, जो अदालत की भाषा में संभव नहीं। उन्होंने संविधान को 'एक जीवंत दस्तावेज़' बताया, जो समय और समाज के साथ विकसित होता रहता है। उनके शब्दों में संविधान की आत्मा स्थिर नहीं है। यह नागरिकों के अनुभवों, उनके संघर्षों और आकांक्षाओं के साथ बदलता है। यही इसकी असली खूबसूरती है कि यह अलग-अलग लोगों से अलग-अलग भाषाओं में बात करता है।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और कांग्रेस सांसद व लेखक डॉ. शशि थरूर
शशि थरूर ने डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रतिपादित संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) की अवधारणा पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि सिर्फ संविधान होना पर्याप्त नहीं है। संवैधानिक नैतिकता तब तक जीवित नहीं रह सकती, जब तक राजनेता अपने मतदाताओं की पूर्वाग्रही सोच से ऊपर नहीं उठते। थरूर ने जोड़ा कि न्यायपालिका और विधायिका की भूमिकाएँ अलग हैं। न्यायाधीश संवैधानिक मूल्यों की व्याख्या स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं, जबकि राजनेताओं को मतदाताओं की अपेक्षाओं का ध्यान रखना पड़ता है। यही कारण है कि संवैधानिक नैतिकता न्यायिक व्याख्या में अधिक परिलक्षित होती है।
दोनों वक्ताओं ने समानता, सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे विषयों पर गहन चर्चा की। चंद्रचूड़ ने व्यभिचार को अपराधमुक्त करने और धारा 377 को समाप्त करने जैसे ऐतिहासिक निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन फैसलों ने नागरिकों को, विशेष रूप से महिलाओं और LGBTQ+ समुदाय को, स्वतंत्रता और सम्मान की नई परिभाषा दी है।
सत्र के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के न्याय प्रणाली में उपयोग पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि AI तकनीक ने पहले ही करीब 33,000 अदालती फैसलों का अनुवाद भारत की 22 भाषाओं में करने में मदद की है। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि तकनीक निर्णयों को आसान बना सकती है, लेकिन न्याय का अंतिम निर्णय मानवीय विवेक से ही संभव है। एआई सिर्फ सहायक है, विकल्प नहीं।
सत्र के अंत में दोनों वक्ताओं ने संविधान को भारत के लोकतंत्र का जीवंत मार्गदर्शक बताया। थरूर ने कहा कि संविधान हमें यह याद दिलाता है कि राष्ट्र सिर्फ भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि समानता और स्वतंत्रता के आदर्शों पर खड़ा एक जीवंत विचार है। चंद्रचूड़ ने जोड़ा कि संविधान हर नागरिक से संवाद करता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने समाज में कितनी समानता, करुणा और न्याय को आत्मसात कर पा रहे हैं।