OMG: दिल्ली-NCR और नोएडा की हवा आपको कर रही है पागल? इस खबर को पढ़कर आपका माइंड हो जाएगा हैंग

दिल्ली समेत कई शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण अब मानसिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक इससे बच्चों का आईक्यू घट रहा है, डिप्रेशन और एंग्जायटी बढ़ रही है और भविष्य की पीढ़ी पर गंभीर असर पड़ रहा है।

Post Published By: ईशा त्यागी
Updated : 28 December 2025, 12:50 PM IST

New Delhi: दिल्ली की जहरीली हवा अब सिर्फ सांसों पर नहीं, सीधे दिमाग पर वार कर रही है। सड़कों पर धुंध, आंखों में जलन और सीने में भारीपन तो अब आम बात हो गई है, लेकिन इसके पीछे एक साइलेंट क्राइम चल रहा है, जो धीरे-धीरे मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर कर रहा है। राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के कई शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण अब बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के दिमाग पर गहरा असर डाल रहा है और विशेषज्ञ इसे बेहद खतरनाक संकेत मान रहे हैं।

दिमाग पर बढ़ता खतरा

स्वास्थ्य विशेषज्ञों और शोध आधारित साक्ष्यों के मुताबिक प्रदूषित हवा केवल फेफड़ों और दिल तक सीमित नुकसान नहीं पहुंचा रही, बल्कि मानसिक संतुलन और संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर रही है। डॉक्टरों का कहना है कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से अवसाद, स्मरण शक्ति में कमी और एकाग्रता से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। बच्चों में कम आईक्यू, याददाश्त कमजोर होना और एडीएचडी जैसी समस्याओं का खतरा भी ज्यादा हो गया है।

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बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा असर

मानसिक रोगियों की देखभाल करने वाली संस्था इमोनीड्स की मनोचिकित्सक डॉ. आंचल मिगलानी के अनुसार, अब तक प्रदूषण को सांस और हृदय रोगों से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव उतने ही गंभीर हैं। शोध यह साफ दिखाते हैं कि प्रदूषण और न्यूरोलॉजिकल व मानसिक विकारों के बीच सीधा संबंध है। बच्चे, बुजुर्ग और कम आय वाले लोग सबसे ज्यादा इसकी चपेट में हैं। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से अल्जाइमर्स और पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।

डिप्रेशन और चिंता का बढ़ता ग्राफ

डॉ. मिगलानी के मुताबिक, दिल्ली जैसे शहरों में अवसाद और चिंता की दरें उन इलाकों की तुलना में 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा हैं, जहां हवा अपेक्षाकृत साफ है। बाहर न निकल पाना, सामाजिक गतिविधियों में कमी और लगातार बीमार पड़ने का डर मानसिक तनाव को और बढ़ा देता है।

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धुंध और मानसिक थकान

इमोनीड्स की मनोवैज्ञानिक फिजा खान बताती हैं कि जब आसमान धुंधला रहता है और दृश्यता कम होती है, तो लोग चिड़चिड़े, बेचैन और मानसिक रूप से थके हुए महसूस करते हैं। प्रदूषक शरीर में सूजन और तनाव को बढ़ाते हैं, जिससे दिमाग की कार्यक्षमता और भावनात्मक संतुलन प्रभावित होता है।

भविष्य पर सवाल

सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र नागपाल कहते हैं कि दिल्ली के बच्चे दुनिया के सबसे प्रदूषित माहौल में बड़े हो रहे हैं। इसका असर उनके व्यवहार, सीखने की क्षमता और पढ़ाई के प्रदर्शन पर साफ दिख रहा है। एम्स दिल्ली की मनोवैज्ञानिक डॉ. दीपिका दहिमा ने इसे मानसिक स्वास्थ्य की आपात स्थिति बताते हुए कहा कि साफ हवा को अब दिमागी सेहत से जोड़कर देखना जरूरी है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 28 December 2025, 12:50 PM IST