Devshayani Ekadashi: देवशयनी एकादशी से शुरू होगा चातुर्मास, जानिए महत्व, नियम और सावधानियाँ

छह जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास की शुरुआत हो रही है। जानिए क्यों इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, इस दौरान क्या करना वर्जित होता है, और किन नियमों का पालन आवश्यक है।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 6 July 2025, 12:19 PM IST
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New Delhi: हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे हरिशयन भी कहा जाता है। इस वर्ष यह तिथि छह जुलाई को पड़ रही है और रात्रि 9:16 बजे तक एकादशी रहेगी। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो दो नवंबर को देवोत्थानी एकादशी पर समाप्त होगा।

चातुर्मास का महत्व और विशेषता

चातुर्मास का अर्थ है चार महीने की अवधि, जिसमें भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और ब्रह्मांडीय कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इस दौरान विवाह, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश, मुंडन, दीक्षा आदि सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। यह समय साधना, तपस्या, व्रत, भक्ति और संयम का होता है।

पद्म पुराण, भविष्य पुराण और श्रीमद्भागवत के अनुसार, इस समय भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। इस दौरान की गई पूजा, मंत्र जाप और दान का विशेष फल मिलता है।

देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व

काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व सदस्य पं. दीपक मालवीय बताते हैं कि देवशयनी एकादशी इस वर्ष शुभ योग में पड़ रही है। यह व्रत सौभाग्य की एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत और उपवास करने से अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पूजन विधि और व्रत नियम

  • इस दिन प्रातःकाल स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें।
  • भगवान विष्णु को पीले फूल, फल, मिठाई, तुलसी दल, धूप-दीप अर्पित करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • व्रत का संकल्प लें और दिनभर उपवास रखें।
  • देवशयनी एकादशी की कथा सुनें या पढ़ें।
  • ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।
  • इस दिन चावल का सेवन वर्जित होता है।

क्या करें और क्या न करें चातुर्मास में?

इस अवधि में धार्मिक कार्यों, मंत्र जाप, जप-तप और संयमित जीवनशैली को महत्व दिया गया है। लेकिन कुछ सावधानियाँ भी रखनी जरूरी हैं

वर्जित खाद्य पदार्थ: गुड़, शहद, तेल, मूली, परवल, बैंगन और पत्तेदार साग खाना निषेध है।

वर्जित कर्म: विवाह, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।

अनुशंसा: इस समय योग, ध्यान, स्वाध्याय और आत्मचिंतन को अपनाने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।

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