Islamabad: पाकिस्तान में हाल ही में प्रस्तावित एक बिल ने राजनीतिक हलकों में तहलका मचा दिया। कुछ सीनेटरों ने संसद में ऐसा संशोधन पेश किया, जिसमें प्रधानमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी कानूनी कार्रवाई या मुकदमे से सुरक्षा देने की बात कही गई। यदि यह पास हो जाता, तो प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार या अन्य कानूनी मामलों से मुक्त हो जाते, लेकिन जैसे ही यह खबर मीडिया में आई, विपक्ष ने इसे शहबाज शरीफ द्वारा अपने लिए कानूनी ढाल बनाने की कोशिश बताया। इतना ही नहीं, सेना को सुप्रीम पावर मिलने से भी कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं।
शहबाज शरीफ की सफाई
मामले की गंभीरता को देखते हुए शहबाज शरीफ ने बयान जारी किया कि यह संशोधन उनके निर्देश या कैबिनेट के मंजूर मसौदे का हिस्सा नहीं था। उन्होंने इसे तुरंत वापस लेने का आदेश दिया और स्पष्ट किया कि एक चुना हुआ प्रधानमंत्री अदालत और जनता दोनों के प्रति जवाबदेह होता है। इस कदम से उन्होंने जनता और विपक्ष को यह संदेश देने की कोशिश की कि वह खुद किसी छूट के पक्ष में नहीं हैं।
On my return from Azerbaijan, I have learnt that some Senators belonging to our party have submitted an amendment regarding immunity for the Prime Minister.
While I acknowledge their intent in good faith, the proposal was not part of the Cabinet-approved draft. I have…
— Shehbaz Sharif (@CMShehbaz) November 9, 2025
सेना को सुप्रीम पावर
इसी बीच, पाकिस्तान की सीनेट में 27वां संवैधानिक संशोधन पेश किया गया। इसके तहत सेना प्रमुख को अब “चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज” का दर्जा मिलेगा, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी का पद समाप्त होगा और नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड का नया पद बनेगा, जिसके प्रमुख की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर सेना प्रमुख करेंगे। इसके साथ ही फाइव-स्टार रैंक के अधिकारियों को आजीवन संवैधानिक सुरक्षा दी जाएगी। इस बदलाव से सेना संविधानिक तौर पर भी प्रधानमंत्री से ऊपर दर्जा हासिल कर लेगी।
जनरल आसिम मुनीर की ताकत बढ़ी
इन बदलावों के पीछे सबसे बड़ा नाम सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का है। वे अब केवल आर्मी चीफ नहीं, बल्कि तीनों सेनाओं पर प्रभाव रखने वाले “चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज” बनने की ओर बढ़ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह कदम सेना को कानूनी अमरता और स्थायित्व देने जैसा है।
शहबाज की मजबूरी या रणनीति?
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इम्युनिटी बिल को तुरंत वापस लेकर अपनी ईमानदार छवि बनाने की कोशिश की। हालांकि, सत्ता का असली केंद्र अभी भी रावलपिंडी में है। शहबाज जानते हैं कि सेना के खिलाफ जाना उनके लिए राजनीतिक आत्मघात हो सकता है, इसलिए उन्होंने जनता के सामने खुद को जवाबदेह प्रधानमंत्री दिखाने का प्रयास किया। वहीं, अब कई लोगों का मानना है कि उनकी सत्ता अब खतरे में भई आ गई है।
लोकतंत्र पर खतरा
विपक्ष और सिविल सोसाइटी ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया। अगर यह संशोधन पास हो जाता है, तो प्रधानमंत्री और संसद की भूमिका सीमित हो जाएगी, जबकि असली फैसले अब सेना मुख्यालय से लिए जाएंगे। इस स्थिति में शहबाज सिर्फ नाम के प्रधानमंत्री रह जाएंगे और पाकिस्तान में सेना का दबदबा और भी मजबूत हो जाएगा।

