बांग्लादेश में एक राजनीतिक कार्यकर्ता की हत्या के बाद हिंसा भड़क गई है। भारतीय दूतावासों को धमकियां, मीडिया पर हमले और चुनावी अनिश्चितता ने भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ा दी है। फरवरी में प्रस्तावित चुनावों पर संकट गहराता दिख रहा है।

बांग्लादेश हिंसा
Dhaka: बांग्लादेश एक बार फिर गंभीर राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। राजधानी ढाका में हालिया हिंसा के बाद न सिर्फ आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी इसका असर पड़ता दिख रहा है। ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग और देश के अन्य हिस्सों में मौजूद
सहायक उच्चायोगों को खुली धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत की चिंता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि फरवरी में होने वाले बांग्लादेश के आम चुनाव उसके रणनीतिक और क्षेत्रीय हितों से सीधे जुड़े हुए हैं।
हालिया हिंसा की जड़ 12 दिसंबर को शरीफ उस्मान हादी की गोली मारकर हत्या है। हादी प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ चल रहे आंदोलन से जुड़े थे और इंकलाब मंच (क्रांति मंच) के प्रवक्ता थे। ढाका में बाइक सवार नकाबपोश हमलावरों ने उन्हें सिर में गोली मारी, जब वह 12 फरवरी को होने वाले चुनावों के लिए अपना अभियान शुरू कर रहे थे। 18 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।
बांग्लादेश पुलिस का दावा है कि हत्या में शामिल दो हमलावरों की पहचान कर ली गई है और वे भारत भाग गए हैं। इसी दावे ने हादी के समर्थकों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है।
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बांग्लादेशी अधिकारियों का कहना है कि इसी आक्रोश के चलते भारतीय प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। ढाका के उच्चायोग के अलावा चटगांव, राजशाही, खुलना और सिलहट में स्थित भारत के चार सहायक उच्चायोगों के खिलाफ भी धमकियां सामने आई हैं। हालात इतने बिगड़ गए कि बांग्लादेशी नागरिकों के लिए वीजा आवेदन केंद्र को एक दिन के लिए बंद करना पड़ा।
भारत ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली में बांग्लादेश के राजदूत को तलब किया। नई दिल्ली ने साफ शब्दों में ढाका से अपने दूतावासों और राजनयिक कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।
साथ ही भारत ने बांग्लादेश के दो प्रमुख मीडिया संस्थानों ‘द डेली स्टार’ और ‘प्रोथोम आलो’ पर हुई भीड़ की हिंसा पर भी चिंता जताई है। इन संस्थानों पर हमले को अभूतपूर्व माना जा रहा है।
चुनाव से पहले बढ़ी भारत की चिंता (सोर्स- गूगल)
हसीना सरकार के आलोचकों ने इन मीडिया संस्थानों को “भारत समर्थक” और “सरकार समर्थक” करार दिया, जबकि हकीकत यह है कि इन्होंने लंबे समय तक सत्तावादी रुझानों के खिलाफ प्रेस स्वतंत्रता का बचाव किया। विडंबना यह है कि पिछले साल इन्हीं संस्थानों ने छात्रों के नेतृत्व में हुए हसीना-विरोधी प्रदर्शनों को “नई सुबह” बताया था। ‘द डेली स्टार’ ने अपने संपादकीय में इसे “स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए एक काला दिन” करार दिया।
मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार हालात पर नियंत्रण पाने के लिए जूझती नजर आ रही है। ढाका की सड़कों पर गुस्सा है, लेकिन उसका कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं दिखता।
दिल्ली की सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति फरवरी में होने वाले चुनावों को स्थगित करने की नौबत ला सकती है। यह आशंका इसलिए भी मजबूत है क्योंकि चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के ठीक एक दिन बाद हादी की हत्या हुई।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर भारत, बांग्लादेश चुनावों पर करीबी नजर बनाए हुए है। यदि शेख हसीना की अवामी लीग को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाती, तो चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठना तय है।
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भारत लगातार “स्वतंत्र, निष्पक्ष, समावेशी और विश्वसनीय” चुनावों की बात करता रहा है। यहां “समावेशी” शब्द का अर्थ अवामी लीग की भागीदारी से है। हालांकि बांग्लादेश सरकार ने अपने बयानों में इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है।
बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने भारत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “भारत के हालिया बयान में हमारे लिए सलाह थी। हमें इसकी आवश्यकता नहीं है। हम अपने पड़ोसियों से यह नहीं सीखते कि चुनाव कैसे कराए जाएं।”