Greater Noida: शारदा यूनिवर्सिटी की बीडीएस छात्रा की आत्महत्या की घटना के दस दिन बीतने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर पाया है। मृतक छात्रा के पिता रमेश जांगड़ा ने इस देरी पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय की ओर से घटना को दबाने और समय खींचने की रणनीति है। उन्होंने याद दिलाया कि प्रशासन ने वादा किया था कि पांच दिनों के भीतर आंतरिक जांच रिपोर्ट सामने लाई जाएगी, लेकिन अब तक सिर्फ मौन साधा गया है।
मेल से पूछताछ को बताया असंवेदनशील
रमेश जांगड़ा ने बताया कि अब विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें ईमेल के ज़रिए सवाल भेजे जा रहे हैं, जिन्हें वे पूरी तरह अस्वीकार कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि हम जांच में पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं, लेकिन हमारे जवाब अब सिर्फ पुलिस को ही मिलेंगे। ईमेल भेजकर जवाब मांगना न सिर्फ असंवेदनशीलता का परिचायक है, बल्कि यह जांच को भटकाने की कोशिश भी प्रतीत होती है।
संस्थान की जवाबदेही पर उठे सवाल
छात्रा की आत्महत्या के बाद शुरू हुई जांच न केवल शारदा विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली बल्कि पूरे शैक्षणिक तंत्र की जवाबदेही पर भी सवाल खड़े कर रही है। ईमेल के माध्यम से शोकाकुल परिजनों से जानकारी मांगना जहां एक तरफ तकनीकी प्रक्रिया कही जा सकती है, वहीं दूसरी तरफ यह एक संवेदनहीन रवैया भी माना जा रहा है। इससे परिजनों को दोहरा मानसिक आघात झेलना पड़ रहा है।
पुलिस कमिश्नर से करेंगे मुलाकात
रमेश जांगड़ा ने बताया कि जैसे ही अंतिम संस्कार से जुड़ी सभी विधियां पूरी होंगी, वे और उनका परिवार पुलिस कमिश्नर से मिलने और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करेंगे। उन्होंने कहा कि अब उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन से उम्मीद नहीं रही और पुलिस से ही उन्हें न्याय की आस है।
मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय महिला आयोग तक
यह मामला अब सिर्फ स्थानीय नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय महिला आयोग इस मामले को संज्ञान में ले चुके हैं, जिससे परिजनों को उम्मीद है कि जल्द ही उन्हें न्याय मिलेगा और बेटी की मौत की असल वजह सामने आएगी।
जवाबदेही से बचता विश्वविद्यालय
यह घटना सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता और जवाबदेही से बचने के प्रयास का भी प्रतीक बन चुकी है। परिजनों का कहना है कि उनकी बेटी अगर मानसिक तनाव में थी तो यूनिवर्सिटी को समय रहते उसे मदद देनी चाहिए थी। लेकिन अब जब सवाल उठाए जा रहे हैं, तो जांच में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही।