दुनिया का पहला बैंक नोट चीन में बनाया गया। तांग और सोंग राजवंश के दौरान व्यापारिक जरूरतों और सिक्कों की भारीपन को देखते हुए फ्लाइंग मनी और जिआओगी जैसी कागज मुद्रा विकसित हुई, जिसने वैश्विक वित्तीय इतिहास बदल दिया।

प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
New Delhi: आज के समय में जब हम पैसे की बात करते हैं, तो सबसे आम रूप कागज की करेंसी है। हम इसे खरीदारी, लेन-देन और बचत के लिए हर दिन इस्तेमाल करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी-कभार कागज के पैसे का विचार पूरी तरह क्रांतिकारी माना जाता था? मेटल के सिक्कों की जगह कागज का इस्तेमाल करना एक ऐसा बदलाव था जिसने व्यापार और अर्थव्यवस्था की दिशा ही बदल दी। आश्चर्य की बात यह है कि दुनिया का पहला बैंक नोट यूरोप या मध्य-पूर्व में नहीं बल्कि चीन में बना था, वह भी हजारों साल पहले। आइए जानते हैं कैसे हुई इसकी शुरुआत।
सबसे शुरुआती कागज के पैसे का रूप सातवीं सदी में चीन के तांग राजवंश (Tang Dynasty) के दौरान देखा गया। उस समय चीन में व्यापार तेजी से बढ़ रहा था। व्यापारी लंबी दूरी पर माल भेजते और लेन-देन करते थे, लेकिन उन्हें बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा था। दरअसल तांबे के सिक्के भारी थे और उन्हें लंबी दूरी तक ले जाना मुश्किल और खतरनाक था।
समस्या का समाधान खोजने के लिए व्यापारियों ने कागज की रसीदों और प्रॉमिसरी नोटों का इस्तेमाल करना शुरू किया। ये नोट व्यापार में इस्तेमाल होने वाले सिक्कों के बराबर मूल्य दिखाते थे और बाद में इन्हें भुनाया जा सकता था। इन कागज के नोटों को "फ्लाइंग मनी" (Flying Money) कहा गया।
इस नोट का नाम "फ्लाइंग मनी" इसलिए पड़ा क्योंकि यह हल्के कागज से बने थे और मेटल के सिक्कों की तरह भारी नहीं थे। इन नोटों ने पैसों को बिना फिजिकल ट्रांसपोर्ट के दूर-दूर तक ले जाने की सुविधा दी। यह व्यापारियों के लिए एक बड़ा लाभ था, क्योंकि अब भारी-भरकम सिक्कों को ले जाने का जोखिम खत्म हो गया।
फ्लाइंग मनी की सफलता के बाद असली मोड़ 10वीं और 11वीं सदी में सोंग राजवंश (Song Dynasty) के दौरान आया। 1023 ईस्वी में चीनी सरकार ने सिचुआन प्रांत में कागज की करेंसी जारी करने पर अधिकार और नियंत्रण ले लिया। इस समय सरकार ने इन नोटों का समर्थन किया और आधिकारिक तौर पर इन्हें जारी किया।
राज्य समर्थित इन नोटों को जिआओजी (Jiaozi) कहा गया। इन्हें दुनिया के पहले आधिकारिक बैंक नोट माना जाता है। इसका महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह केवल व्यापारियों के लिए नहीं बल्कि पूरे राज्य में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त मुद्रा बन गई। इससे कागज की करेंसी का अस्तित्व और स्थायित्व सुनिश्चित हुआ और इसे अन्य क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जाने लगा।
चीन में कागज के पैसे के आविष्कार के पीछे कई कारण थे। सबसे बड़ा कारण था तांबे के सिक्कों की कमी। व्यापार तेजी से बढ़ रहा था और भारी सिक्कों को ले जाना मुश्किल था। इसके अलावा, मेटल की मुद्रा में लेन-देन धीमा होता था।
कागज की करेंसी ने इन समस्याओं का समाधान किया। यह हल्की, ले जाने में आसान और व्यापार के लिए सुरक्षित थी। व्यापारी अब बड़े मूल्य के लेन-देन बिना किसी खतरे के कर सकते थे। कागज का यह प्रयोग व्यापारिक गतिविधियों को तेज करने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी स्थिर करने में मददगार साबित हुआ।
RBI ने लॉन्च किया ऑफलाइन डिजिटल रुपया: अब बिना इंटरनेट के भी कर सकेंगे पेमेंट, जानिए पूरी डिटेल
चीन में कागज मुद्रा के इस नवाचार ने विदेशी आगंतुकों को भी चौंका दिया। 13वीं सदी में इटैलियन खोजकर्ता मार्को पोलो ने अपनी यात्राओं में चीन की कागज मुद्रा प्रणाली के बारे में लिखा। उन्होंने अपनी डायरी और लेखों में इसका विस्तृत वर्णन किया।
मार्को पोलो की लिखी हुई जानकारी यूरोप में फैल गई और लोगों को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि पैसे केवल सिक्कों तक सीमित नहीं रहते। धीरे-धीरे यूरोप में भी कागज मुद्रा के विचार को अपनाया जाने लगा। हालांकि, यूरोप में इसका इस्तेमाल कई सदी बाद हुआ, लेकिन चीन ने इसे दुनिया में सबसे पहले लागू किया।
दुनिया का पहला बैंक नोट चीन में बनाया गया था, जिसे फ्लाइंग मनी कहा जाता था। यह हल्के कागज के बने नोट थे, जो भारी मेटल सिक्कों की जगह व्यापार में इस्तेमाल किए गए। 10वीं सदी में सोंग राजवंश ने इन्हें आधिकारिक रूप से जारी किया और इसे जिआओजी कहा गया।
कागज की मुद्रा ने न केवल व्यापारियों के लिए लेन-देन आसान किया बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को स्थिर और सुरक्षित बनाने में मदद की। चीन का यह नवाचार बाद में पूरे विश्व में फैल गया और आज हम जिस कागज मुद्रा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसकी नींव प्राचीन चीन में ही रखी गई थी।
No related posts found.