शीतला माता पुजा (बास्योडा) का शास्त्रीय आधार
शीतला माता पुजा (बास्योडा) का शास्त्रीय आधार
प्रश्न: इस बार शीतला माता की पूजा कब करे?
उत्तर: लोकपर्व बास्योड़ा (शीतलाष्टमी) सोमवार ( 2O मार्च, 2017) को मनाया जाएगा। इससे पहले रविवार को घरों में विभिन्न पकवान बनाए जाएंगे। शीतलाष्टमी पर शीतला माता के भोग के लिए पुए, पापड़ी, राबड़ी, लापसी और गुलगुले सहित विभिन्न पकवान तैयार किए जाएंगे।
सोमवार को महिलाएं शीतला माता की पूजा-अर्चना कर उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाकर परिजनों की सुख-समृद्धि की कामना करें।
प्रश्न: क्यों लगाते हैं ठंडे पकवानों का भोग,
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उत्तर: भारतीय संस्कृति में जितने भी पर्व-उत्सव मनाए जाते हैं उनका संबंध ऋतु, स्वास्थ्य, सद्भाव और भाईचारे से है। होली के बाद मौसम का मिजाज बदलने लगता है और गर्मी भी धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर आ जाती है। बास्योड़ा मूलतः इसी अवधारणा से जुड़ा पर्व है।
इस दिन ठंडे पकवान खाए जाते हैं। राजस्थान में बाजरे की रोटी, छाछ, दही का सेवन शुरू हो जाता है ताकि गर्मी के मौसम और लू से बचाव हो सके। शीतला माता के पूजन के बाद उनके जल से आंखें धोई जाती हैं। यह हमारी संस्कृति में नेत्र सुरक्षा और खासतौर से गर्मियों में आंखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है।
प्रश्न: क्या संदेश है इस पर्व का हमारे जीवन को?
उत्तर: माता का पूजन करने से सकारात्मकता का संचार होता है। मस्तक पर तिलक लगाने का मतलब है अपने दिमाग को ठंडा रखो। जल्दबाजी से काम न लो। विवेक और समझदारी से ही फैसला लो। क्रोध, तनाव और चिंता को पीछे छोड़कर वर्तमान को संवारो।
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प्रश्न: क्या बहुत पुराना है ये प्रचलन
उत्तर: बास्योड़ा के दिन नए मटके, दही जमाने के कुल्हड़, हाथ से चलने वाले पंखे लाने व दान करने का भी प्रचलन है। यह परंपरा बताती है कि हमारे पूर्वज ऋतु परिवर्तन को स्वास्थ्य के साथ ही परोपकार, सद्भाव से भी जोड़कर रखते थे। यह प्रचलन तब से है जब कूलर, फ्रीज, एसी जैसे उपकरणों का आविष्कार भी नहीं हुआ था।
प्रश्न: कैसे करें मां शीतला का पूजन?
उत्तर: बास्योड़ा के दिन सुबह एक थाली में राबड़ी, रोटी, चावल, दही, चीनी, मूंग की दाल, बाजरे की खिचड़ी, चुटकी भर हल्दी, जल, रोली, मोली, चावल, दीपक, धूपबत्ती और दक्षिणा आदि सामग्री से मां शीतला का पूजन करना चाहिए। पूजन किया हुआ जल सबको आंखों से लगाना चाहिए।