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उत्तराखंड की बेटी ने फिर रचा इतिहास, देश का नाम किया रोशन; दिल जीत लेगी सफलता की ये कहानी

जर्मनी में भारत की बेटी ने दुनिया को दिखाया कि पर्वत की ऊंचाइयों से निकली मेहनत, अंतरराष्ट्रीय मंच पर पदक बन सकती है। चमोली की मानसवी ने कांस्य जीतकर इतिहास रच दिया। लेकिन इस जीत के पीछे छिपी है संघर्ष, पहाड़ और सीमित साधनों की गाथा। क्या आप जानते हैं उसका पूरा सफर?
Post Published By: Poonam Rajput
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उत्तराखंड की बेटी ने फिर रचा इतिहास, देश का नाम किया रोशन; दिल जीत लेगी सफलता की ये कहानी

Chamoli, Uttarakhand: उत्तराखंड की बेटियाँ आज देश-दुनिया में अपनी प्रतिभा और साहस से नए मुकाम हासिल कर रही हैं। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है चमोली जिले के छोटे से गाँव मजोठी की होनहार बेटी मानसवी नेगी की, जिन्होंने हाल ही में FISU विश्व विश्वविद्यालय खेल 2025 में भारत के लिए कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है।

16 से 27 जुलाई 2025 के बीच जर्मनी के राइन-रूहेर में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय आयोजन में मानसवी ने वॉक रेस टीम इवेंट में भाग लिया और शानदार प्रदर्शन करते हुए भारतीय टीम को कांस्य पदक दिलाया। यह उपलब्धि न केवल खेल के क्षेत्र में एक बड़ी जीत है, बल्कि उत्तराखंड की बेटियों की दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मबल का प्रतीक भी है।

संघर्ष से सफलता तक का सफर

मानसवी का यह सफर आसान नहीं रहा। सीमित संसाधनों, कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और आर्थिक दिक्कतों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। रोज़ पहाड़ी रास्तों पर अभ्यास करना, सुविधाओं की कमी के बावजूद खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रखना—ये सभी चुनौतियाँ उनके इरादों को मजबूत करती गईं।

इससे पहले भी मानसवी ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। 37वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप, गुवाहाटी में उन्होंने 10,000 मीटर वॉक रेस में स्वर्ण पदक जीतकर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। 82वीं ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स चैंपियनशिप, तमिलनाडु में 20 किमी वॉक रेस में भी उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया। 2023 में चीन के चेंगडू में आयोजित विश्व विश्वविद्यालय खेल में भी उन्होंने टीम इवेंट में कांस्य पदक जीता था।

प्रेरणा बनीं मानसवी

मानसवी की ये उपलब्धियाँ उत्तराखंड ही नहीं, पूरे भारत की युवा पीढ़ी को यह संदेश देती हैं कि सपने चाहे जितने भी ऊँचे हों, अगर मेहनत और हौसला साथ हो तो उन्हें हकीकत में बदला जा सकता है। उन्होंने यह साबित कर दिखाया है कि पर्वतीय बेटियाँ भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश का झंडा बुलंद कर सकती हैं।

सरकार और समाज से सहयोग की दरकार

ऐसी प्रतिभाएँ तभी और आगे बढ़ सकती हैं जब उन्हें समय पर प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता और संसाधनों का समर्थन मिले। मानसवी जैसे उदाहरणों से यह साफ है कि अगर पहाड़ों की छुपी हुई प्रतिभाओं को सही दिशा और संसाधन दिए जाएं, तो वे भी दुनिया में इतिहास रच सकती हैं।

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