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उत्तराखंड राज्य गठन की रजत जयंती पर गैरसैंण में आयोजित समारोह के दौरान राज्य आंदोलनकारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। चमोली में सीएम धामी द्वारा दी गई शॉल और माला को जमीन पर फेंका गया। आंदोलनकारियों ने सरकार पर उपेक्षा और शहीदों की अनदेखी का आरोप लगाया।
गैरसैंण में उत्सव के बीच विरोध की गूंज (सोर्स- गूगल)
Chamoli: उत्तराखंड राज्य गठन के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में सोमवार को आयोजित रजत जयंती समारोह उस समय विवादों में आ गया जब राज्य आंदोलनकारियों ने मंच के सामने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कार्यक्रम स्थल पर मौजूद थे, तभी कुछ आंदोलनकारियों ने सम्मान स्वरूप दी गई शॉल और माला जमीन पर फेंक दी।
इस घटना से समारोह स्थल पर कुछ देर के लिए अफरा-तफरी मच गई। प्रशासन ने स्थिति को संभालने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल को मौके पर तैनात किया।
प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारियों ने सरकार पर उपेक्षा और असंवेदनशीलता का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य का गठन लंबे संघर्ष, बलिदानों और शहीदों के खून से हुआ है, लेकिन आज भी आंदोलनकारियों को उनका हक नहीं मिला है।
एक आंदोलनकारी ने कहा, हमने उत्तराखंड राज्य के लिए सैकड़ों शहीद दिए, हजारों ने जेलें भरीं। आज सरकार हमारे संघर्ष की बजाय अपने दिखावे पर अधिक ध्यान दे रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि रजत जयंती जैसे ऐतिहासिक मौके पर भी शहीद परिवारों और आंदोलनकारियों को उचित सम्मान नहीं दिया गया।
आंदोलनकारियों ने गैरसैंण में “शहीदों को न्याय दो”, “आंदोलनकारियों को सम्मान दो” जैसे नारे लगाए। उन्होंने कहा कि सरकार ने राज्य के निर्माण में योगदान देने वालों को हाशिए पर धकेल दिया है, जबकि सत्ता में बैठे लोग केवल राजनीतिक लाभ देख रहे हैं।
प्रदर्शन के दौरान कई आंदोलनकारी काली पट्टी बांधे हुए थे। कुछ ने मंच की ओर बढ़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया।
विरोध बढ़ता देख प्रशासन ने अतिरिक्त पुलिस बल को बुलाया और कार्यक्रम स्थल के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी। कुछ देर के हंगामे के बाद पुलिस और स्थानीय प्रशासन के हस्तक्षेप से स्थिति सामान्य हो सकी।
आंदोलनकारियों ने जताया रोष (सोर्स- गूगल)
हालांकि, समारोह के दौरान इस विरोध ने सरकार को असहज स्थिति में डाल दिया। मुख्यमंत्री धामी ने कार्यक्रम जारी रखा, लेकिन उनके चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी।
आंदोलनकारियों ने सरकार से राज्य आंदोलनकारियों के लिए स्थायी सम्मान नीति, शहीद परिवारों को विशेष आर्थिक सहायता और रोजगार में आरक्षण जैसी मांगें उठाईं। उनका कहना था कि इन मांगों पर वर्षों से आश्वासन दिए जा रहे हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
उन्होंने यह भी कहा कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने का निर्णय अब तक अधर में लटका है, जबकि यह स्थान राज्य आंदोलन की आत्मा से जुड़ा हुआ है।
राज्य के 25 साल पूरे होने के इस ऐतिहासिक मौके को सरकार विकास उपलब्धियों के रूप में मनाना चाहती थी, लेकिन विरोध प्रदर्शन ने पूरे आयोजन की दिशा बदल दी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विरोध जनता के भीतर बढ़ते असंतोष का प्रतीक है।