Dehradun: उत्तराखंड के देहरादून जिले के सीमांत गांव टीमली में पानी की समस्या ने गंभीर रूप ले लिया है। 10 दिनों से इस गांव के ग्रामीण पानी के लिए तरस रहे हैं, और पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जंगलों से कड़ी मेहनत कर वापस ला रहे हैं।
यह पानी न केवल पीने के लिए, बल्कि रोटियां पकाने और नहाने के लिए भी इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन जल संस्थान के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।
30-40 साल पुरानी टंकी बनी खंडहर
गांव में जो पानी की टंकी 30-40 साल पहले बनाई गई थी, वह अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। दीवारों पर घास उग चुकी हैं और टंकी की बाउंड्री भी टूट चुकी है। टंकी का निर्माण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हो चुका है और इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे यह किसी भूतिया लोकेशन पर फिल्म की शूटिंग हो रही हो। इसके अलावा, टंकी के नीचे बने बोर में मिट्टी धंस चुकी है, जिससे गंदा पानी अब सीधे गांव के नलों तक पहुंच रहा है।
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हालांकि, जल संस्थान के अधिकारियों को इन समस्याओं का कोई फर्क नहीं पड़ता। फाइलों में सब कुछ ‘संतोषजनक’ बताया जा चुका है। अधिकारियों का ध्यान अब केवल कागजों में योजनाओं की रिपोर्ट भेजने और उनके तथाकथित ‘मरम्मत कार्य’ दिखाने तक सीमित रह गया है। वास्तविकता यह है कि गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण अपनी सेहत के लिए खतरे में हैं, लेकिन अधिकारी इस संकट को लेकर संवेदनशील नहीं दिखते।
टैंकरों से राहत
गांव के जिला पंचायत सदस्य मुस्तकीम और ग्राम प्रधान ने मिलकर अस्थायी राहत देने के लिए टैंकरों के जरिए पानी भेजने की कोशिश की है, लेकिन यह उपाय पूरी तरह से अस्थायी है। ग्रामीणों का सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि गांव में जो नई टंकी तैयार हो चुकी है, उसमें पानी कब आएगा? जल संस्थान के अधिकारी अब भी इस पर कोई स्पष्ट जवाब देने से बच रहे हैं।
जल संस्थान की मौन नीति
टीमली गांव में पानी की समस्या को लेकर जल संस्थान की मौन नीति अब तक जारी है। अधिकारियों के मन में इस संकट को लेकर कोई हलचल नहीं है, जबकि यहां के लोग अब भी पानी के बिना दिन-ब-दिन संघर्ष कर रहे हैं। विकास की रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि सब कुछ ठीक है, लेकिन हकीकत यह है कि यहां के लोग अब भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।