राष्ट्रीय बाघ गणना की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। यह जंगलों में रहने वाले देश के सबसे ताकतवर शिकारी की सेहत, उसके दायरे और भविष्य की पूरी तस्वीर तैयार करने का अभियान है। इस बार टाइगर सेंसस को वैज्ञानिक तरीके से अंजाम दिया जा रहा है।

देशभर में राष्ट्रीय बाघ गणना शुरू (Img: Google)
Ramnagar: देश के जंगलों में रहने वाले बाघों की सही तस्वीर जानने का काम एक बार फिर शुरू हो गया है। हर चार साल में होने वाली राष्ट्रीय बाघ गणना की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस गणना के जरिए यह पता लगाया जाएगा कि जंगलों में बाघ कितने हैं। वे किन इलाकों में घूम रहे हैं और उनका दायरा कितना बढ़ या घट रहा है। इसी जानकारी के आधार पर सरकार और वन विभाग तय करेंगे कि बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आगे क्या कदम उठाने हैं। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व समेत देश के सभी बड़े वन क्षेत्रों में अब कैमरों और वैज्ञानिक तरीकों से बाघों की मौजूदगी दर्ज की जाएगी।
टाइगर सेंसस को लेकर इस बार तकनीक पर खास भरोसा जताया गया है। वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को टूरिज्म वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया यानी WII की तरफ से विशेष ट्रेनिंग दी गई है। इस ट्रेनिंग में यह समझाया गया कि डेटा कैसे जुटाया जाएगा। कैमरा ट्रैप से मिली तस्वीरों का विश्लेषण कैसे होगा। किसी भी गलती की गुंजाइश कैसे कम की जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि सही आंकड़े तभी सामने आएंगे जब गणना वैज्ञानिक तरीके से और पूरी ईमानदारी के साथ की जाए।
इस बार बाघ गणना में कैमरा ट्रैप तकनीक को सबसे अहम हथियार बनाया गया है। जंगलों के भीतर अलग-अलग जगहों पर कैमरे बाघों की तस्वीरें कैद करते हैं। इन्हीं तस्वीरों के जरिए बाघों की पहचान की जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि हर बाघ की धारियों का पैटर्न इंसान के फिंगर प्रिंट की तरह अलग होता है। इसी वजह से एक ही बाघ को दो बार गिनने की गलती नहीं होती। हर बाघ की पहचान पक्के तौर पर हो पाती है। इससे न केवल बाघों की सही संख्या सामने आती है, बल्कि यह भी पता चलता है कि कौन सा बाघ किस इलाके में ज्यादा घूम रहा है।
यह राष्ट्रीय बाघ गणना केवल आंकड़ों का खेल नहीं है। इसी के आधार पर सरकार और वन विभाग आगे की संरक्षण नीतियां तय करते हैं। अगर किसी इलाके में बाघों की संख्या बढ़ रही है तो वहां के संरक्षण मॉडल को दूसरे क्षेत्रों में लागू किया जाता है। वहीं जहां संख्या घटती दिखती है, वहां सुरक्षा, गश्त और संसाधनों को और मजबूत किया जाता है। यह सेंसस आने वाले कई सालों तक बाघ संरक्षण की दिशा तय करता है।
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उत्तराखंड का कॉर्बेट टाइगर रिजर्व इस गणना में खास महत्व रखता है। दुनिया भर में मशहूर कॉर्बेट को बाघ के लिहाज से सबसे अहम टाइगर रिजर्व में गिना जाता है। यहां 260 से ज्यादा बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है। पूरे उत्तराखंड राज्य की बात करें तो यहां करीब 560 बाघ बताए जाते हैं।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर राहुल मिश्रा ने बताया कि कॉर्बेट में बाघ गणना का काम शुरू कर दिया गया है। यह प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी की जाएगी। पूरे रिजर्व क्षेत्र में 550 से ज्यादा कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं। जिससे हर कोने को कवर किया जा सके। यह सर्वे बाघ संरक्षण के लिहाज से बेहद अहम है और इसी के आधार पर आने वाले वर्षों की रणनीति तय की जाएगी।