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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर सामने आया सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान, जानिए क्या कहा?

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक दिया गया इस्तीफा देश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुका है। जहां सत्ता पक्ष इस घटनाक्रम पर चुप है, वहीं विपक्ष के नेताओं की प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट है कि इसे महज़ "स्वास्थ्य कारण" के तौर पर स्वीकार करना सबके लिए सहज नहीं।
Post Published By: Poonam Rajput
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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर सामने आया सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान, जानिए क्या कहा?

Lucknow: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक दिया गया इस्तीफा देश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुका है। जहां सत्ता पक्ष इस घटनाक्रम पर चुप है, वहीं विपक्ष के नेताओं की प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट है कि इसे महज़ “स्वास्थ्य कारण” के तौर पर स्वीकार करना सबके लिए सहज नहीं।

सूत्रों के अनुसार, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बयान दिया कि “अगर स्वास्थ्य का मसला है तो चिंता स्वाभाविक है।” लेकिन उनकी बातों में भी अनकहा संशय झलकता है। इसी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि उन्हें पर्दे के पीछे की जानकारी नहीं है यह असामान्यता की ओर इशारा करता है।

सपा सांसद अवधेश प्रसाद, जो हाल ही में धनखड़ से मिले थे, ने साफ कहा कि उन्हें बीमार नहीं लगा। यही बात  कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी ने और आगे बढ़ाई। उन्होंने कहा कि धनखड़ जैसे “अक्खड़ मिजाज” वाले व्यक्ति, जो बीमार होने के बावजूद सदन में आते थे, उनका इस्तीफा “सामान्य नहीं” है। उनका सीधा आरोप है कि “सरकार की चुप्पी संकेत देती है कि कुछ गड़बड़ है।”

सबसे कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया  निर्दलीय सांसद पप्पू यादव की रही, जिन्होंने इस इस्तीफे को “बड़ा घपला” बताते हुए कहा कि  “कहीं निगाहें, कहीं निशाना” वाली बात हो रही है। उनका इशारा था कि यह इस्तीफा किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह, जो इस्तीफे से ठीक पहले उपराष्ट्रपति से मिले थे, ने बताया कि वे बेहद अच्छे मूड में थे और केवल सदन को बेहतर चलाने की चिंता जता रहे थे। उनका कहना है कि सरकार को हस्तक्षेप कर उन्हें वापस लाना चाहिए।

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल एक स्वास्थ्य कारण नहीं लगता। विपक्ष के नेताओं के बयानों में एक स्पष्ट संकेत है कि इस कदम के पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति या दबाव हो सकता है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि सरकार आखिर क्यों चुप है? और क्या यह चुप्पी किसी बड़े बदलाव की भूमिका तो नहीं लिख रही?

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