Auraiya News: उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के विकासखंड भाग्यनगर के अंतर्गत आने वाले धर्मपुर गांव में विद्यालय मर्जर के सरकारी निर्णय के खिलाफ बच्चों और उनके परिजनों ने जोरदार विरोध दर्ज कराया है। प्राथमिक विद्यालय धर्मपुर, जिसमें 50 से 55 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, अब उसे गदनपुर प्राथमिक विद्यालय में मर्ज कर दिया गया है। इससे ग्रामीणों में नाराजगी व्याप्त है।
धर्मपुर के विद्यालय में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। गांव के लोगों का कहना है कि यह विद्यालय न केवल बच्चों की शिक्षा का केंद्र है, बल्कि सामाजिक समानता और सशक्तिकरण का भी प्रतीक रहा है। वहीं, अब इन बच्चों को एक अन्य गांव गदनपुर जाकर पढ़ाई करनी पड़ेगी। जहां पहले से ही संसाधनों की कमी है।
धर्मपुर में हैं बेहतरीन सुविधाएं, फिर भी मर्ज क्यों?
ग्रामीणों ने बताया कि धर्मपुर विद्यालय में पहले से ही पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं। जिनमें पक्की सड़क, खेल का मैदान, स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, शौचालय, रसोईघर (किचन) और एकल कक्ष (एकल शिक्षक) की सुविधा शामिल है। इसके विपरीत, गदनपुर विद्यालय में न केवल छात्रों की संख्या कम है (महज 34 बच्चे), बल्कि वहां अधोसंरचना भी धर्मपुर के मुकाबले कमजोर है।
बच्चों और परिजनों की सबसे बड़ी चिंता
गदनपुर जाने का रास्ता बच्चों के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है। धर्मपुर से गदनपुर जाने के लिए बच्चों को जिस सड़क से गुजरना पड़ता है। वह फफूँद से मुरादगंज को जोड़ने वाली मुख्य सड़क है। जो बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से मिलती है। इस रास्ते पर भारी वाहन चलने के कारण दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है। परिजनों का कहना है कि वे अपने बच्चों को ऐसी खतरनाक सड़क से गुजरकर स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं।
बच्चों की साफ मांग: “शिक्षा यहीं मिले”
विद्यालय परिसर में बच्चों ने एकजुट होकर कहा, “हम यहीं पढ़ेंगे, कहीं और नहीं जाएंगे। अगर सरकार हमें पढ़ाना चाहती है तो हमारे गांव के विद्यालय में ही शिक्षा दिलवाए।” बच्चों की यह आवाज़ केवल शिक्षा की मांग नहीं है, बल्कि अपने अधिकारों की रक्षा की पुकार भी है।
प्रशासन से गांववालों की अपील
धर्मपुर गांव के लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब धर्मपुर में बेहतर सुविधाएं और अधिक छात्र संख्या मौजूद हैं, तो विद्यालय को बंद कर गदनपुर में क्यों भेजा जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह निर्णय बिना जमीनी हकीकत को देखे लिया गया है और इससे बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
संवेदनशील मामला बनता जा रहा है यह मर्जर
यह मुद्दा अब केवल स्कूल मर्जर का नहीं रह गया है, बल्कि यह ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था, बच्चों की सुरक्षा, सामाजिक न्याय और स्थानीय जनभागीदारी जैसे कई बड़े सवालों से जुड़ गया है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया तो वे बड़ा जन आंदोलन करने को बाध्य होंगे।