Fatehpur: फतेहपुर में धार्मिक सौहार्द भंग करने वाला एक विवाद अचानक सामने आया है। कुछ लोग भगवा झंडा लेकर एक मकबरे में दाखिल हुए और तोड़फोड़ शुरू कर दी। बाद में पथराव की घटना भी हुई, जिस पर पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर स्थिति को काबू में किया। फिलहाल मौके पर शांति बनी हुई है, लेकिन विवाद की जड़ें और भविष्य को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
मामले की तह तक पहुंचने के लिए मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता से बातचीत की गई, जिन्होंने दावा किया कि विवादित स्थल एक प्राचीन मकबरा है। उनका कहना है कि इस मकबरे का जिक्र 1881 की पुस्तक ‘द इम्पीरियर गजेटियर आफ इंडिया’ में भी मिलता है। यह मकबरा लगभग साढ़े तीन सौ साल पुराना है और इसे मंगी मकबरा या संगी मकबरा कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘पत्थर का मकबरा’। यहाँ पर अब्दुल समद खान और उनके बेटे अबु मोहम्मद की कब्रें मौजूद हैं, जिनकी मृत्यु क्रमशः 1699 और 1704 में हुई थी। फतेहपुर गजेटियर और अन्य इतिहासकारों ने भी इस मकबरे का उल्लेख किया है।
वहीं, हिंदू पक्ष इस दावे का विरोध करता है और कहता है कि यह मकबरा नहीं बल्कि ठाकुर जी का मंदिर है। उनके अनुसार यह जमीन पहले गिरधारी लाल और राय ईश्वर सहाय की जमींदारी थी, जिसका बंटवारा 1927 और 1928 में एसडीएम कोर्ट के माध्यम से हुआ था। हिंदू पक्ष का यह भी दावा है कि यह संपत्ति बाद में वक्फ बोर्ड की हो गई और एक मुस्लिम मुतवल्ली को नियुक्त किया गया, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय वहां आने लगा। वे यह भी कहते हैं कि जमीन के बीच में शिव जी का मंदिर था।
मुस्लिम समुदाय का मानना है कि गाटा नंबर 753 में मकबरा दर्ज है, जबकि हिंदू समुदाय का दावा है कि यह राय ईश्वर की संपत्ति का हिस्सा है। अब दोनों पक्षों के बीच इस विवाद का अगला कदम क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी।
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यह विवाद न केवल ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का है, बल्कि फतेहपुर की सामाजिक स्थिरता और सौहार्द के लिए भी चुनौती बन सकता है। शांति बनाए रखने और उचित समाधान खोजने के लिए प्रशासन की भूमिका अहम होगी।
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