रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के दो दिवसीय भारत दौरे ने दोनों देशों के बीच 19 अहम समझौतों पर मुहर लगाई। इन समझौतों में रक्षा, ऊर्जा, परमाणु शक्ति, व्यापार और कौशल विकास शामिल हैं। इस दौरे से भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई है और दोनों देशों ने बहुपक्षीय मंचों पर फिर से संयुक्त भूमिका निभाने का संकल्प दिखाया है।

पुतिन के दौरे से भारत को क्या फायदा
New Delhi: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन का दो दिवसीय भारत दौरा पूरा हो गया है। वह 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए भारत आए थे और इस दौरान दोनों देशों के बीच 19 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। आज हम समझेंगे कि पुतिन की इस यात्रा से भारत को क्या लाभ मिला, वैश्विक परिदृश्य में इसका क्या महत्व है और आगे भारत-रूस संबंध किस दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के दौरे से भारत को क्या फायदा हुआ है इसका विश्लेषण किया।
राष्ट्रपति पुतिन का यह दौरा ऐसे समय में हुआ है जब दुनिया कई गंभीर भू-राजनीतिक चुनौतियों से गुजर रही है। अमेरिका में ट्रंप टैरिफ को लेकर आर्थिक अनिश्चितता बनी हुई है, रूस-यूक्रेन युद्ध अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ, वैश्विक तेल बाज़ार अस्थिरता झेल रहा है और पाकिस्तान-अफगानिस्तान की आंतरिक राजनीति में तनाव बढ़ता जा रहा है।
इसके साथ ही भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ किए गए ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद यह उच्चस्तरीय दौरा हुआ, जिस कारण पूरी दुनिया की निगाहें इस विजिट पर टिकी रहीं। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा दुनिया को एक संकेत है कि भारत और रूस क्षेत्रीय सुरक्षा, ऊर्जा, व्यापार और रक्षा सहयोग में पहले की तुलना में और अधिक समन्वित भूमिका निभाने जा रहे हैं।
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भारत और रूस के संबंधों की सबसे खास और बड़ी बात यह है कि दोनों देशों का इतिहास राजनीति से ऊपर उठकर चलता आया है। चाहे दिल्ली में किसी भी विचारधारा की सरकार रही हो, मॉस्को और नई दिल्ली हमेशा एक-दूसरे के विश्वसनीय, स्थिर और भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार रहे हैं।
इस ऐतिहासिक संबंधों की एक मिसाल है 27 अक्टूबर 2013 को मॉस्को में आयोजित 14वां भारत-रूस शिखर सम्मेलन, जहां भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने रूस को भारत का “निकटतम मित्र” बताया था और कहा था कि दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार और सामरिक सहयोग नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है। उस ऐतिहासिक यात्रा के गवाह डाइनामाइट न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ मनोज तिबड़ेवाल आकाश खुद बने और दूरदर्शन न्यूज़ के वरिष्ठ संवाददाता के रुप में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ जाकर मास्को में इस शिखर सम्मेलन को कवर किया था।
भारत-रूस संबंधों की शुरुआत आज़ादी से पहले ही हो चुकी थी, जब अप्रैल 1947 में भारत ने तत्कालीन सोवियत संघ से औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए। 1951 में कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ ने भारत के समर्थन में वीटो किया, जिसने दोनों देशों के बीच भरोसे की नींव को और मजबूत किया। 1955 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहली मॉस्को यात्रा हुई और इसी वर्ष सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव भारत आए। 1965 में नेहरू की दूसरी मॉस्को यात्रा के दौरान सोवियत समर्थन औद्योगिक विकास, भारी मशीनरी, स्टील प्लांट और बड़े बांधों के निर्माण में बेहद निर्णायक रहा।
1971 के भारत-पाक युद्ध में तो सोवियत संघ खुलकर भारत के साथ खड़ा रहा। उसी वर्ष भारत और सोवियत संघ के बीच ऐतिहासिक ‘शांति और मैत्री संधि’ पर हस्ताक्षर हुए, जिसने दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। सोवियत पतन के बाद 1999 में व्लादिमिर पुतिन रूस की सत्ता में आए और 2000 के दशक में भारत-रूस संबंधों को नई परिभाषा मिली।
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2000 में पुतिन की भारत यात्रा के दौरान ‘रणनीतिक साझेदारी घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर हुए, जिसके बाद रक्षा सहयोग, सुखोई लड़ाकू विमान निर्माण, ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना, क्रायोजेनिक तकनीक और परमाणु ऊर्जा में सहयोग बहुत तेज़ी से बढ़ा। संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, एससीओ और G-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रूस लगातार भारत का महत्वपूर्ण साझेदार बना रहा।
अब 2025 में एक बार फिर वही भरोसा, वही गर्माहट लौटती दिख रही है। पुतिन की इस यात्रा ने साफ संकेत दिया है कि दोनों देशों के संबंध न केवल पारंपरिक रूप से मजबूत हैं, बल्कि भविष्य में यह साझेदारी और गहरी होने वाली है। इस यात्रा में 19 समझौतों में रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, अंतरिक्ष, आर्कटिक सहयोग, शिक्षा, कौशल विकास, डिजिटल टेक्नोलॉजी और न्यूक्लियर एनर्जी जैसे क्षेत्रों में बड़ी प्रगति दर्ज की गई है। रूस ने भारत के साथ रक्षा उत्पादन में ‘Make in India’ को और गति देने का संकेत दिया है, जिसमें सुखोई-30 एमकेआई के अपग्रेड, S-400 सिस्टम की डिलीवरी और ब्रह्मोस के नए संस्करण पर सहयोग महत्वपूर्ण बिंदु रहे।
ऊर्जा के क्षेत्र में भी कई निर्णायक समझौते हुए, जिन्हें भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। रूस दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा उत्पादक देशों में से एक है और भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। इसलिए सस्ता कच्चा तेल, लॉन्ग-टर्म LNG कॉन्ट्रैक्ट और रोसनेफ्ट के साथ नई सप्लाई व्यवस्था भारत के ऊर्जा सुरक्षा ढांचे को मजबूत करेगी। इसके अलावा रूस ने भारत को आर्कटिक क्षेत्र में ऊर्जा अन्वेषण और रिसर्च के लिए सहयोग बढ़ाने का भरोसा दिया है।
व्यापार के क्षेत्र में दोनों देशों ने 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नई रणनीति पर सहमति जताई है। वर्तमान में भारत-रूस व्यापार लगभग 65-70 अरब डॉलर के आसपास है, जिसमें भारत का आयात रूस से अधिक रहा है। इस असंतुलन को दूर करने के लिए फार्मा, आईटी, कृषि उत्पाद, ऑटोमोबाइल कॉम्पोनेन्ट और स्टार्टअप सेक्टर में सहयोग पर सहमति हुई है। दोनों देशों ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को और सरल बनाने का रोडमैप भी तैयार किया है, ताकि डॉलर निर्भरता कम हो और वैश्विक आर्थिक दबावों का असर कम हो सके।
रक्षा कूटनीति की दृष्टि से यह यात्रा बेहद महत्त्वपूर्ण रही। यूक्रेन संघर्ष के बावजूद रूस ने भारत को कई महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकों के हस्तांतरण का भरोसा दिया है। भारत ने रूस के साथ संयुक्त उत्पादन की कई परियोजनाओं पर भी सकारात्मक चर्चा की, जिससे भारत की आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता को गति मिलेगी।
इसके साथ ही रूस ने यह स्पष्ट किया कि भारत उसकी विदेश नीति में “विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदार” की श्रेणी में है। पुतिन की इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी रहा कि दोनों नेताओं ने वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ को मजबूत करने पर जोर दिया। भारत और रूस दोनों इस बात पर सहमत हैं कि दुनिया बहुध्रुवीय हो रही है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में अधिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
कुल मिलाकर, पुतिन का यह भारत दौरा न केवल प्रतीकात्मक था बल्कि अत्यंत परिणामोन्मुख रहा। इसने यह संदेश दिया कि भारत और रूस के रिश्ते समय, भू-राजनीति और वैश्विक दबावों की परीक्षा में हमेशा खरे उतरे हैं और आगे भी यह साझेदारी और मजबूत होने वाली है।