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Noida: नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों से जुड़ी यह खबर है आपके काम की

रियल एस्टेट निकाय नारेडको ने उत्तर प्रदेश सरकार से जमीन पर बिल्डरों के बकाया भुगतान पर साधारण ब्याज लेने या हरियाणा की तरह कुल बकाया राशि में से ब्याज का 75 प्रतिशत माफ कर देने का अनुरोध किया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Noida: नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों से जुड़ी यह खबर है आपके काम की

नयी दिल्ली: रियल एस्टेट निकाय नारेडको ने उत्तर प्रदेश सरकार से जमीन पर बिल्डरों के बकाया भुगतान पर साधारण ब्याज लेने या हरियाणा की तरह कुल बकाया राशि में से ब्याज का 75 प्रतिशत माफ कर देने का अनुरोध किया है।

रियल एस्टेट कंपनियों के शीर्ष संगठन नारेडको की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष आर के अरोड़ा ने राज्य के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा को लिखे एक पत्र में बकाया जमीन भुगतान के लिए एकबारगी समाधान नीति अपनाने की गुहार लगाई है।

संगठन ने कहा है कि राज्य सरकार को बिल्डरों को आवंटित जमीन के बकाया भुगतान पर साधारण ब्याज वसूलने या फिर हरियाणा सरकार की 'समाधान से विकास' नीति अपनाने के बारे में सोचना चाहिए। उसके बाद बकाया राशि के भुगतान को नए सिरे से निर्धारित किया जाए।

नारेडको का यह पत्र गत नवंबर में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने विभिन्न बिल्डरों को पट्टे पर दी गई जमीन के बकाया भुगतान पर आठ प्रतिशत की अधिकतम दर से ब्याज वसूलने के जून, 2020 के अपने ही आदेश को वापस ले लिया था। इस फैसले को नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा में सक्रिय डेवलपरों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

अरोड़ा ने अपने पत्र में उत्तर प्रदेश सरकार को सुझाव दिया है कि बिल्डरों को जमीन आवंटित किए जाने की तारीख से देय भुगतान पर साधारण ब्याज वसूला जाए, न कि चक्रवृद्धि ब्याज। इसके अलावा बकाया भुगतान को पुनर्निधारित करने के बारे में भी राज्य सरकार सोचे।

इसके साथ ही उन्होंने हरियाणा सरकार की समाधान से विकास नीति को अपनाकर एकबार में ही पूरे मामले का निपटारा कर देने का विकल्प भी रखा है। हरियाणा सरकार की इस नीति में डेवलपरों को ब्याज वाले हिस्से का 25 प्रतिशत ही चुकाना होता है और बाकी 75 प्रतिशत माफ कर दिया जाता है।

अरोड़ा ने कहा, 'ऐसा अनुमान है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों का बिल्डरों पर कुल बकाया करीब 40,000 करोड़ रुपये है। इसमें प्रीमियम, ब्याज और जुर्माना राशि भी शामिल है। लेकिन उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कोई भी डेवलपर जमीन का बकाया चुकाने की हालत में नहीं है।'

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