महाराष्ट्र: मानसिक रूप से दिव्यांग लड़की के साथ बलात्कार के आरोपी को अदालत ने बरी किया

डीएन ब्यूरो

महाराष्ट्र की एक अदालत ने 2013 में पड़ोसी पालघर जिले में मानसिक रूप से कमजोर, बोलने और सुनने में अक्षम एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के मामले में 31 वर्षीय आदिवासी आरोपी को बरी कर दिया है।

अदालत  (फाइल)
अदालत (फाइल)


ठाणे: महाराष्ट्र की एक अदालत ने 2013 में पड़ोसी पालघर जिले में मानसिक रूप से कमजोर, बोलने और सुनने में अक्षम एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के मामले में 31 वर्षीय आदिवासी आरोपी को बरी कर दिया है।

पॉक्सो अधिनियम से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश वीवी विरकर ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा, इसलिए उसे संदेह का लाभ दिया जा रहा है।

अदालत का यह आदेश 15 जुलाई को जारी किया गया था और इसकी प्रति बृहस्पतिवार को उपलब्ध कराई गई।

विशेष लोक अभियोजक रेखा हिवराले ने अदालत को बताया कि पीड़िता एवं आरोपी पालघर के जवाहर तालुका में एक ही इलाके में रहते थे। घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी जबकि आरोपी शादीशुदा था और उसके दो बच्चे थे ।

लड़की अपनी विधवा मां के साथ रहती थी । रात में, लड़की अपनी बुआ के घर सोने जाती थी, जो पड़ोस में ही रहती थी और रतौंधी से पीड़ित थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी पीड़िता को फुसलाकर अपने घर ले गया जहां उसने उससे शादी करने का वादा करके कई बार उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया।

पीड़िता 2013 में गर्भवती हो गई लेकिन आरोपी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया और उसके परिवार के सदस्यों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी।

पीड़िता ने सांकेतिक भाषा के माध्यम से अपनी मां को इसके बारे में सूचित किया, जिसके बाद उसके परिवार ने पुलिस से संपर्क किया और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम समेत विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया।

बचाव पक्ष के वकील रामराव जगताप ने आरोपी के खिलाफ आरोपों का विरोध किया और अभियोजन पक्ष की दलील को खारिज कर दिया ।

उन्होंने दलील दी कि अभियोजन पक्ष उस डॉक्टर से पूछताछ करने में विफल रहा, जिसके पास पीड़िता मेडिकल परीक्षण के लिए गई थी, और उसकी बुआ से भी पूछताछ करने में विफल रही, जिसके पास वह रात में रुकती थी ।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।

अदालत ने कहा, इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है।

 










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