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DN Exclusive: चुनावी सफर में डाइनामाइट न्यूज टीम से बोले प्रवासी, नेता काम करते तो बिहार से बाहर न जाना पड़ता

डाइनामाइट न्यूज की टीम का बिहार विधान सभा का चुनाव सफर जारी है। हमारी स्पेशल कवरेज की इस कड़ी में बिहार के प्रवासी लोगों ने डाइनामाइट न्यूज से अपना दर्द साझा किया और कई मुद्दों पर बात की। पढिये, डाइनामाइट न्यूज की स्पेशल रिपोर्ट
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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DN Exclusive: चुनावी सफर में डाइनामाइट न्यूज टीम से बोले प्रवासी, नेता काम करते तो बिहार से बाहर न जाना पड़ता

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के लिये कल 3 नवंबर को वोटिंग होने जा रही है। ऐसे में नेता भी हर मतदान से पहले और प्रचार के अंतिम क्षणों तक भी जनता को लुभा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ डाइनामाइट न्यूज टीम भी आखिरी क्षणों तक इन चुनावों में जनता के मिजाज और उनके असली मुद्दों को समझने में व्यस्त है। इन सबके बीच बिहार की जनता भी वोट से ऐन पहले अपने मत के लिये अपने मन को मजबूत बनाती आ रही है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता शुभम खरवार ने चुनाव में वोटिंग समेत कई कार्यों के लिये अपने घर जा रहे बिहार के लोगों से यह उनके असली मुद्दों को समझने को कोशिश की। लेकिन इस बातचीत जो बात आयी, वह यह कि मन से कोई भी बिहार नहीं छोड़ना चाहता। रोजी-रोटी, काम-कमाई और पढाई-लिखाई की मजबूरी के चलते सभी लोग बिहार से बाहर निकलें हैं और यह सिलसिला आज तक जारी है।  

डाइनामाइट न्यूज की टीम ने अपने इस चुनावी सफर में ट्रेन में बैठे कई मुसाफिरों से बातचीत की। दिल्ली से दरभंगा आ रहे एक युवा यात्री ने कहा कि बिहार की तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है। लेकिन इसके बदलने की रफ्तार पैसेंजर ट्रेन की तरह ही काफी सुस्त है, जो रुक-रुक कर चलती है। यही कारण है कि बिहार जैसे बड़े राज्य में तेज रफ्तार विकास की जरूरत होती है। 

दूसरे यात्री ने पहले पैसेंजर की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि विकास की रफतार इतनी कम है कि जब तक यह बिहार के एक छोर से दूसरे छोर की ओर जाने लगता है, पांच साल पूरे होने लगते हैं और फिर चुनाव आ जाते हैं। उनका मानना है कि जब तक जनता जागरूक नहीं होती, तब तक इसी तरह की परेशानियों से बिहार जूझता रहेगा।

ट्रेन में यात्रा कर रहे एक बुजूर्ग ने डाइनामाइट न्यूज से बातचीत में कहा कि बिहार में राजनीति करना तो सब जानते हैं, लेकिन काम करने वाले नेताओं की संख्या बेहद कम है। उनका कहना था कि यदि नेता काम करने वाले होते तो बिहार इतनी बड़ी संख्या में पलायन नहीं होता। बिहार के लोग बाहर न जाते और हमारे संसाधनों को लूटा नहीं जाता। वे सभी से अपील भी करते हैं कि वोट करें, जरूर करें लेकिन सोच-समझकर करें।   
 

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