New Delhi: भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी और उनकी अलग रह रहीं पत्नी हसीन जहां के बीच चल रहा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। हसीन जहां ने शमी से अलग होने के बाद गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। शुक्रवार को इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने इस मामले में शमी और पश्चिम बंगाल सरकार से जवाब मांगा है। यह मामला तब और सुर्खियों में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से गुजारा भत्ते की वर्तमान राशि पर टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट का बयान
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि हसीन जहां को वर्तमान में मिल रहा अंतरिम गुजारा भत्ता काफी ज़्यादा है। अदालत ने इस पर अपनी चिंता व्यक्त की और मामले की समीक्षा करने की बात कही। कोर्ट के अनुसार, भरण-पोषण के लिए दी जा रही राशि के स्तर को देखते हुए इसे पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है। यह टिप्पणी हसीन जहां और उनके वकीलों के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उन्होंने गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद शमी को हसीन जहां की गुजारा भत्ता याचिका पर नोटिस जारी किया। अदालत ने मौजूदा 4 लाख रुपये मासिक भत्ते को “काफी ज़्यादा” बताया, जबकि हसीन जहां का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है। #MohammedShami #HaseenJahan #Alimony pic.twitter.com/8RJhEllved
— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) November 7, 2025
कलकत्ता उच्च न्यायालय का आदेश
हसीन जहां ने पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने शमी को अपनी अलग रह रहीं पत्नी हसीन जहां और उनकी बेटी को मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। आदेश के अनुसार, शमी को हसीन जहां को ₹1.5 लाख प्रति माह और बेटी को ₹2.5 लाख प्रति माह देने होंगे। कुल मिलाकर यह राशि ₹4 लाख प्रति माह बनती है।
हसीन जहां का तर्क
हसीन जहां ने अदालत में तर्क दिया कि 4 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि वर्तमान खर्च और जीवन यापन की आवश्यकताओं को देखते हुए यह राशि कम है। उन्होंने शमी से यह राशि बढ़ाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ध्यान में रखते हुए शमी और पश्चिम बंगाल सरकार से जवाब मांगा है।
आगे की कानूनी प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों से जवाब मांगा है और जल्द ही अगली सुनवाई की तारीख तय कर सकता है। कोर्ट की ओर से यह भी संकेत दिया गया है कि भरण-पोषण की राशि की समीक्षा और समायोजन संभव है। यह मामला कानूनी रूप से महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि इसमें उच्च स्तर के अंतरिम गुजारा भत्ते और बड़े पैमाने पर वित्तीय दायित्वों का सवाल उठता है।

