New Delhi: भारतीय टेस्ट क्रिकेट के दीवार कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा ने 24 अगस्त 2025 को क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास का ऐलान कर दिया है। उन्होंने 103 टेस्ट और 5 वनडे मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनके रिटायरमेंट के बाद क्रिकेट जगत से उन्हें ढेरों शुभकामनाएं मिलीं। इसके बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने करियर के उतार-चढ़ाव और आज के क्रिकेट की मानसिकता पर खुलकर बात की। हालांकि, इस दौरान उन्हें कुछ ऐसा भी कहा, जो अब चर्चा का विषय बना हुआ है।
दिल्ली की पारी सबसे खास
पुजारा से पूछा गया कि उन्हें कब लगा कि वह अपने चरम पर खेल रहे हैं। इस पर उन्होंने कहा, “श्रीलंका में हरी पिच पर निर्णायक टेस्ट में 145 रन, एडिलेड में 123 रन और दिल्ली में टूटी उंगली के साथ खेली गई 82 रनों की नाबाद पारी- ये मेरे सबसे यादगार और संतोषजनक क्षण थे।”
शरीर टूटा, लेकिन मानसिकता मजबूत
2021 में ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान पुजारा कई बार चोटिल हुए थे। इस पर उन्होंने कहा, “ऐसे समय में शरीर जवाब देने लगता है, लेकिन आपको मानसिक रूप से मजबूत रहना होता है। जब पूरा देश आपकी ओर देख रहा होता है, तो आप हार नहीं मान सकते। कई बार दर्द असहनीय हो जाता है, लेकिन मेरी देशभक्ति और ईश्वर में आस्था ने मुझे आगे बढ़ाया।”
टी20 से टेस्ट के दरवाजे खुलते हैं?
क्या आज के बल्लेबाजों में धैर्य की कमी है? इस सवाल पर पुजारा ने कहा, “आजकल टी20 में सफल होने के बाद प्लेयर को टेस्ट टीम में जगह मिलती है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में यही ट्रेंड है क्योंकि T20 सबसे लोकप्रिय फॉर्मेट बन चुका है। इसमें कोई बुराई नहीं है, बशर्ते खिलाड़ी आक्रामक और रक्षात्मक खेल में संतुलन बना सके।”
खेल बदला है, स्वीकार करना होगा
पुजारा ने स्वीकार किया कि क्रिकेट अब पहले जैसा नहीं रहा। उन्होंने कहा, “खिलाड़ियों को तीनों फॉर्मेट में ढलना होगा। टेस्ट क्रिकेट के लिए भी पहले आक्रामक मानसिकता से आना और फिर रक्षात्मक तरीके अपनाना अब सामान्य हो गया है। हमें इस बदलाव को अपनाना होगा।”
संन्यास के बाद भी प्रेरणा
चेतेश्वर पुजारा भले ही अब मैदान पर नहीं दिखेंगे, लेकिन उनका धैर्य, अनुशासन और समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बना रहेगा। उन्होंने क्रिकेट को एक सच्चे साधक की तरह जिया और देश के लिए कई बार अपनी सीमाओं को पार किया।
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