New Delhi: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के रुझानों में BJP और JDU के गठबंधन (NDA) की शानदार जीत दिख रही है। रुझानों के मुताबिक, NDA ने 243 सीटों में से 200 सीटों के आंकड़े को पार करने की ओर कदम बढ़ा लिया है, जबकि विपक्षी RJD महज 30 सीटों के आसपास सिमटती दिख रही है। यदि यह परिमाण में भी बदलता है, तो RJD 2010 की स्थिति में पहुंच सकती है, जब पार्टी महज 22 सीटों पर सिमट गई थी। तो सवाल यह है कि RJD का प्रदर्शन इतना खराब क्यों हुआ, खासकर जब तेजस्वी यादव ने 3 करोड़ सरकारी नौकरियों का वादा किया था? आइए समझते हैं कि क्यों RJD को इस बार हार का सामना करना पड़ा।
2010 में RJD का हाल
बिहार विधानसभा चुनाव 2010 में NDA ने जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था। वहीं, RJD का गठबंधन LJP और कांग्रेस के साथ था। उस समय भी, कांग्रेस का कोई गठबंधन नहीं था और वह अकेले चुनाव में उतरी थी। NDA ने 206 सीटें जीतने में सफलता पाई, जबकि RJD-LJP गठबंधन महज 25 सीटों तक सिमट गया था। RJD को केवल 22 सीटें मिली थीं और LJP को 3 सीटें। तब बिहार में नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली लहर चल रही थी, जिसने RJD के वजूद को कमजोर कर दिया।
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30 सीटों पर क्यों सिमटी RJD?
अब बात करते हैं कि 2025 में RJD का प्रदर्शन इतना खराब क्यों हुआ। चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि इस बार RJD का वोट शेयर पहले से काफी बढ़ा हुआ था, जो 2010 में 18.84% था, वहीं इस बार उनका वोट शेयर 23% के आसपास था। लेकिन बावजूद इसके, उनके पास सीटों का आंकड़ा उतना नहीं बढ़ सका। इसका मुख्य कारण यह था कि RJD को इस बार अपने दम पर और कमजोर साथी कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ना पड़ा।
2015 और 2020 के चुनावों में RJD की सफलता
RJD का प्रदर्शन 2015 और 2020 में बेहतर रहा था, जब उन्होंने जेडीयू और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। 2015 के चुनाव में, RJD का वोट शेयर 18.4% था, लेकिन जेडीयू के साथ गठबंधन होने के कारण उनकी सीटें 22 से सीधे 80 तक पहुंच गई थीं। इसके बाद 2020 में भी RJD ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और इस बार उनका वोट शेयर बढ़कर 23.11% हो गया, जिससे उनकी सीटें 75 तक पहुंच गईं।
2025 के चुनाव में घटित हुआ बदलाव
लेकिन 2025 में RJD के लिए परिस्थिति अलग रही। इस बार उन्हें जेडीयू जैसे मजबूत दल के साथ गठबंधन करने का मौका नहीं मिला, और कांग्रेस जैसे कमजोर साथी के साथ चुनाव लड़ा। इस बार JDU के खिलाफ LJP जैसे खतरनाक उम्मीदवार नहीं थे, जिन्होंने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था। ऐसे में NDA का मुकाबला RJD के गठबंधन से सीधे था, और इस स्थिति में NDA के उम्मीदवारों ने अधिक सीटों पर बढ़त बना ली।
RJD के नेतृत्व में क्या कमी रही?
तेजस्वी यादव ने चुनावी प्रचार के दौरान 3 करोड़ सरकारी नौकरियों का वादा किया था, लेकिन ऐसा कोई ठोस रणनीतिक कदम या योजना नजर नहीं आई, जिससे मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके। RJD ने अपने चुनावी वादों को सही तरीके से जनता तक नहीं पहुंचाया। इसके अलावा, जातिवाद और परंपरागत समीकरण अब उतना प्रभावी नहीं रह गए हैं, जितना पहले हुआ करते थे। मतदाता अब विकास और संवेदनशील नेतृत्व को अधिक महत्व दे रहे हैं, और NDA ने इन दोनों पहलुओं को सही तरीके से इस्तेमाल किया।

