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ट्रंप का दावा निकला गलत: भारत रूस से खरीदेगा तेल, आया अधिकारिक बयान

डोनाल्ड ट्रंप के दावे के बावजूद भारत रूस से तेल खरीद जारी रखेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में कहा था कि भारत ने रूस से तेल आयात बंद कर दिया है, लेकिन अब सूत्रों से जानकारी सामने आई है कि भारत यह खरीद कीमत, गुणवत्ता और आर्थिक हितों के आधार पर करता रहेगा। भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय नियमों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया है।
Post Published By: Asmita Patel
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ट्रंप का दावा निकला गलत: भारत रूस से खरीदेगा तेल, आया अधिकारिक बयान

New Delhi: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 30 जुलाई को कहा था कि भारत अब रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदेगा। उन्होंने इस कदम को ‘अच्छा’ बताया, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि उन्हें इसकी पक्की जानकारी नहीं है। ट्रंप ने रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने के उद्देश्य से भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। जिसे अब 7 अगस्त तक टाल दिया गया है।

भारत का संतुलित रुख

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने ट्रंप के बयान पर संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत वैश्विक परिस्थितियों और बाज़ार की उपलब्धता को देखते हुए तेल खरीद के निर्णय लेता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार और रणनीतिक हितों को संतुलन में रखते हुए आगे बढ़ता है।

भारत की ऊर्जा जरूरतें और वैश्विक भूमिका

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और अपनी 85% तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। रूस से तेल खरीदकर भारत ने न केवल अपनी घरेलू ज़रूरतों को पूरा किया, बल्कि वैश्विक तेल बाजार की स्थिरता में भी योगदान दिया।

रूस से तेल खरीद

सूत्रों के अनुसार, भारत ने कभी प्रतिबंधित स्रोतों से तेल नहीं खरीदा। रूसी तेल पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं है, बल्कि इसे G7 और यूरोपीय संघ द्वारा तय मूल्य-सीमा के अधीन रखा गया है। भारत की तेल कंपनियां इस मूल्य-सीमा (60 डॉलर प्रति बैरल) का पालन कर रही हैं और सभी लेनदेन अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत किए जाते हैं।

तेल खरीद न होती तो बढ़ जाती वैश्विक महंगाई

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल न खरीदा होता, तो 2022 में तेल की कीमतें 137 डॉलर/बैरल से भी ऊपर पहुंच सकती थीं। इसका असर वैश्विक महंगाई पर पड़ता और गरीब व विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर बड़ा दबाव बनता।

अमेरिका और यूरोप का दोहरा रवैया?

सूत्रों ने यह भी बताया कि जब भारत को ट्रंप प्रशासन द्वारा रूस से तेल खरीदने के लिए निशाने पर लिया गया, तब वही यूरोपीय देश रूस से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) और पाइपलाइन गैस का सबसे बड़ा खरीदार बना रहा। यूरोपीय संघ रूस की एलएनजी का 51% हिस्सा खरीदता है, जबकि चीन और जापान क्रमशः 21% और 18% हिस्सेदारी के साथ पीछे हैं।

भारत ने जिम्मेदार उपभोक्ता की तरह किया व्यवहार

भारत ने हमेशा तेल खरीद में जिम्मेदार वैश्विक उपभोक्ता की भूमिका निभाई है। जहां ईरान और वेनेजुएला से अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित तेल की खरीद नहीं की जाती, वहीं रूस से खरीदी गई तेल G7 मूल्य-सीमा के अंतर्गत रही है।

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