New Delhi: अमेरिका ने भारत में अपने नए राजदूत की नियुक्ति कर दी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने खास सहयोगी सर्जियो गोर को यह जिम्मेदारी दी है। भारत सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है, हालांकि अभी तक भारत की ओर से इस पर कोई विस्तृत प्रतिक्रिया नहीं आई है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर से जब इस नियुक्ति को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मैंने इसके बारे में पढ़ा है।”
यह नियुक्ति ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के लगभग सात महीने बाद हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में अहम साबित हो सकता है।
सीनेट की मंजूरी बाकी
हालांकि, सर्जियो गोर की नियुक्ति को अभी अमेरिकी सीनेट की मंजूरी मिलनी बाकी है। माना जा रहा है कि ट्रंप के करीबी होने के चलते इसमें कोई बड़ी अड़चन नहीं आएगी। गोर के कार्यकाल में व्यापार, इमिग्रेशन, पाकिस्तान और रूस जैसे अहम मुद्दों पर सीधी बातचीत की उम्मीद जताई जा रही है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप इस साल नवंबर में होने वाले क्वाड (Quad) शिखर सम्मेलन के लिए भारत आ सकते हैं। लेकिन साथ ही, भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की चेतावनी से रिश्तों में खटास की संभावना भी बनी हुई है।
गोर की नई भूमिका और भारत की चिंता
सर्जियो गोर को भारत में राजदूत बनाने के साथ ही उन्हें दक्षिण और मध्य एशिया का विशेष दूत भी नियुक्त किया गया है। यही बात भारत के लिए चिंता का कारण है, क्योंकि इससे यह आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका भारत-पाकिस्तान मामलों में दखल बढ़ा सकता है।
भारत का कहना है कि अमेरिका अक्सर भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलने की कोशिश करता है, जिससे हमलावर और पीड़ित के बीच फर्क मिट जाता है। हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत इस मामले में और सतर्क हो गया है।
मध्यस्थता पर भारत का साफ रुख
ट्रंप कई बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाने में भूमिका निभाई। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 जून को स्पष्ट कर दिया कि न तो कोई व्यापार समझौता हुआ है और न ही अमेरिका की मध्यस्थता स्वीकार की जाएगी।
विदेश मंत्री जयशंकर ने भी दोहराया कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत सीधे द्विपक्षीय स्तर पर होगी और किसी तीसरे पक्ष की भूमिका स्वीकार नहीं होगी।
भारत पहले भी अमेरिका की इस तरह की कोशिशों का विरोध करता रहा है। 2009 में भी भारत ने ओबामा प्रशासन को पीछे हटने पर मजबूर किया था, जब रिचर्ड होलब्रुक को अफ-पाक क्षेत्र का विशेष दूत बनाया गया था।