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Religious Conversion Law: यूपी सरकार को धर्म परिवर्तन के खिलाफ बने कानून पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए धर्म परिवर्तन पर बनाये गये कानून को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। पढ़ें पूरी खबर
Post Published By: Tanya Chand
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Religious Conversion Law: यूपी सरकार को धर्म परिवर्तन के खिलाफ बने कानून पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

New Delhi: देश की शीर्ष अदालत ने बुधवार को धर्मांतरण और लव जिहाद के खिलाफ बनाये गये कानून को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया कि मामले पर सुनवाई पूरी न होने तक वो इन मामलों में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे।

सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा द्वारा दायर की गई याचिका पर यूपी सरकार को यह आदेश जारी किया। रूपरेखा ने अपनी याचिका में राज्य सरकार द्वारा लव जिहाद और धर्मांतरण के खिलाफ बनाये गये कानून को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का हनन करने वाला बताया।

इस याचिका में कहा गया कि यूपी सरकार का यह कानून विभिन्न धर्मों से संबंध रखने वाले जोड़ों को परेशान करने का एक जरिया बन गया है। इस कानून की आड़ में किसी को भी धर्मांतरण के आरोप में आसानी से फंसाया जा सकता है, जिससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है। इसलिये इस कानून पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को पहले से ही लंबित इसी तरह के मामलों के साथ जोड़ दिया है और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए ‘विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2020’ को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया है। यह याचिका लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कानून को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को पहले से लंबित इसी तरह के मामलों के साथ जोड़ दिया है, जिससे संकेत मिलता है कि अदालत इस मुद्दे पर व्यापक सुनवाई की तैयारी कर रही है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कानून तथाकथित ‘लव जिहाद’ के मामलों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लागू किया था। हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ इसे भेदभावपूर्ण और अल्पसंख्यकों के खिलाफ मानते हैं। अब सभी की नजर सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी है।

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