New Delhi: संसद के मानसून सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का मुद्दा गरमा सकता है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने राज्यसभा में नियम 267 के तहत कार्य स्थगन प्रस्ताव दिया। दोनों नेताओं ने मतदाता सूची के इस विशेष पुनरीक्षण अभियान से जुड़ी चिंताओं पर संसद में तत्काल चर्चा की मांग की।
वोटर लिस्ट रिवीजन पर विपक्ष का हंगामा
चुनाव आयोग की इस कार्रवाई को लेकर विपक्षी दलों में तीखी नाराजगी है। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जा रहे SIR अभियान को लेकर राजनीतिक घमासान छिड़ गया है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय जनता दल (RJD) समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी इस प्रक्रिया की निष्पक्षता और समय को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कदम कई वोटर्स को मताधिकार से वंचित कर सकता है। उन्होंने आशंका जताई कि SIR की आड़ में बड़े स्तर पर नाम हटाने या जोड़ने की प्रक्रिया में पक्षपात हो सकता है। वहीं, AAP सांसद संजय सिंह ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए पूरे मामले पर संसद में गंभीर चर्चा की जरूरत बताई।
चुनाव आयोग की मंशा पर जताई शंका
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने 1 जुलाई से बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया है। इसे SIR यानी ‘Special Intensive Revision’ नाम दिया गया है। आयोग का कहना है कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट करना एक नियमित प्रक्रिया है ताकि निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित किया जा सके। आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया 31 जुलाई तक चलेगी और इसका मकसद नए मतदाताओं का पंजीकरण और मृत या डुप्लीकेट नामों को हटाना है।
AAP और कांग्रेस सांसदों ने उठाई SIR पर चर्चा की मांग
हालांकि विपक्षी दल इस समय-सीमा और प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है। उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने का बहाना बन सकती है।
बिहार में मतदाता सूची को लेकर पहले भी कई बार विवाद होते रहे हैं, लेकिन इस बार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शुरू की गई इस प्रक्रिया ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। विपक्ष को डर है कि इस गहन समीक्षा के जरिए जानबूझकर कुछ समुदायों या वर्गों के नाम हटाए जा सकते हैं जिससे चुनावी समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।
अब देखना होगा कि संसद में इस मुद्दे पर विपक्ष कितना दबाव बना पाता है और चुनाव आयोग इस पर किस तरह की सफाई देता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर आगे क्या रुख अपनाया जाता है, यह भी आने वाले समय में महत्वपूर्ण होगा।

