

सावन का महीना धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है। इस महीने में लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा करते हैं। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में जानिए इस बार कांवड़ यात्रा कब है।
कांवड़ यात्रा 2025 (सोर्स-इंटरनेट)
नई दिल्ली: सावन का महीना शिवभक्तों के लिए अत्यंत पावन और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस पवित्र महीने में भगवान शिव की उपासना, व्रत, रुद्राभिषेक और जल चढ़ाने की परंपरा बेहद प्राचीन है। इसी धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है कांवड़ यात्रा, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं द्वारा पूरे उल्लास और भक्ति भाव से की जाती है।
कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा 2025?
इस वर्ष 2025 में सावन मास की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है, और इसी दिन से कांवड़ यात्रा की भी विधिवत शुरुआत मानी जाएगी। यह यात्रा लगभग 30 दिनों तक चलेगी और 9 अगस्त 2025 को सावन मास की समाप्ति के साथ इसका समापन होगा। इस दौरान देशभर से श्रद्धालु हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख, ऋषिकेश और सुल्तानगंज जैसे तीर्थस्थलों से पवित्र गंगाजल भरकर अपने गंतव्य – शिवालयों तक पदयात्रा करते हैं।
हरिद्वार कांवड़ (सोर्स-इंटरनेट)
कांवड़ यात्रा की पौराणिक मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले भगवान परशुराम ने की थी, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित किया था। तभी से यह परंपरा भक्तों के बीच आस्था और निष्ठा के रूप में प्रचलित हो गई। कांवड़िये “हर-हर महादेव” और “बम-बम भोले” के जयकारों के साथ यह यात्रा पूरी करते हैं।
कांवड़ यात्रा के दौरान पालन किए जाने वाले प्रमुख नियम
1. यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को मानसिक, वाणी और शारीरिक रूप से शुद्ध रहना चाहिए।
2. नशीले पदार्थ जैसे शराब, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट आदि का सेवन पूरी तरह वर्जित होता है।
3. एक बार यात्रा शुरू होने के बाद कांवड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए। यदि गलती से ऐसा होता है, तो नई कांवड़ लेकर यात्रा पुनः शुरू करनी होती है।
4. मल-मूत्र त्याग के बाद स्नान करके ही दोबारा कांवड़ को छूना चाहिए।
5. यात्रा के दौरान चमड़े से बनी किसी भी वस्तु से दूर रहना जरूरी होता है।
कांवड़िये क्या करते हैं इस यात्रा में?
कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को 'कांवड़िया' कहा जाता है। ये श्रद्धालु कई किलोमीटर की कठिन पदयात्रा तय करते हैं और अपने-अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों तक गंगाजल पहुंचाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यह जल उन्हें हरिद्वार, गोमुख, सुल्तानगंज या गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से प्राप्त होता है।
कांवड़ यात्रा न केवल धार्मिक विश्वास का परिचायक है, बल्कि यह संयम, भक्ति और सेवा की भावना को भी दर्शाती है। यह यात्रा जहां एक ओर शरीर को सहनशक्ति सिखाती है, वहीं दूसरी ओर मन को शुद्धि और आत्मिक शांति भी प्रदान करती है।
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