सोमवार को लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने पर सपा सांसद इकरा हसन ने इस गीत के गहरे अर्थ को समझाया और सरकार की नीतियों पर तीखा हमला किया। उन्होंने प्रदूषण, कृषि संकट और महिला सम्मान जैसे मुद्दों को उठाया। इकरा ने वंदे मातरम् को राजनीति का हिस्सा बनाए जाने पर भी सवाल उठाए।

इकरा हसन
New Delhi: सोमवार को लोकसभा में 'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई। इस चर्चा में उत्तर प्रदेश के कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन ने भाग लिया और इस मौके पर वंदे मातरम् के भावार्थ और उसके महत्व पर जोर दिया। इकरा हसन ने विशेष रूप से वंदे मातरम् के राजनीतिक इस्तेमाल और इसके प्रति धार्मिक समुदायों के विचारों पर सवाल उठाए।
इकरा हसन ने कहा कि वंदे मातरम् का अर्थ सिर्फ एक गाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की प्रकृति और जन-जन की वंदना को समर्पित गीत है। उनका कहना था कि यह गीत जल, जंगल, जमीन, हरियाली और निर्मल हवा की वंदना करता है। इकरा हसन ने यह भी कहा कि इस गीत का वास्तविक अर्थ समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह भारत के हर नागरिक की मंगल कामना करता है, ताकि वह स्वस्थ, सुरक्षित और सम्मान के साथ जी सके।
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सपा सांसद ने कहा कि यह जरूरी है कि हम वंदे मातरम् के भावार्थ को समझें और इसे सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक के रूप में न देखें। उन्होंने मुस्लिम समुदाय को कठघरे में खड़ा करने के प्रयासों पर सवाल उठाया और कहा कि भारतीय मुसलमानों को कभी भी "बाय चांस" नहीं, बल्कि "बाय च्वाइस" के रूप में भारतीय माना गया है। इकरा हसन ने यह भी पूछा कि क्या हम अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ टैगोर) के सुझावों पर सवाल उठाएंगे, जिन्होंने इस गीत के कुछ हिस्सों को अपनाने का निर्णय लिया था?
इकरा हसन ने आगे कहा कि वंदे मातरम् के छंदों को अपनाने का फैसला उन महान नेताओं की सलाह से हुआ था, जिन्होंने इस गीत के माध्यम से देश के सभी वर्गों को एक सूत्र में बांधने का काम किया। उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम् गीत में प्रयुक्त शब्द 'सुजलाम सुफलाम' का अर्थ है एक ऐसा देश जहां पर्याप्त जल, जीवनदायिनी नदियां बहती हों, लेकिन वर्तमान में देश की नदियों की हालत बहुत खराब है, विशेषकर यमुना नदी की स्थिति जो प्रदूषण से गंभीर रूप से प्रभावित है।
इकरा हसन ने यमुना और गंगा नदी के पानी की जहर जैसी स्थिति को भी मुद्दा बनाया और कहा कि किसान मजबूरी में इसी प्रदूषित पानी से खेती कर रहे हैं। उन्होंने 'नमामि गंगे' योजना पर भी सवाल उठाया और कहा कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद स्थिति जस की तस है। इसके साथ ही, 'मलयज शीतलाम्' के संदर्भ में इकरा ने भारत की प्रदूषित हवा को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा कि हमारे देश की हवा अब जीवनदायिनी नहीं, बल्कि जहर बन चुकी है।
इकरा हसन ने यह भी कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ मातृभूमि की वंदना नहीं करता, बल्कि इसमें इस धरती की हर नारी, बेटी और महिला के सम्मान की बात भी की गई है। लेकिन आज देश में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहे हैं, और यह आंकड़े चिंताजनक हैं। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वंदे मातरम् के नाम पर राजनीति की जा रही है, जबकि वास्तविकता में ज़मीन पूंजीपतियों को सौंपी जा रही है और आदिवासियों को उनके घरों से बेदखल किया जा रहा है।