New Delhi: राजधानी दिल्ली इस समय जहरीली हवा की चपेट में है। आसमान में धुंध की मोटी परत और सांसों में घुला जहर सरकार को कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) जैसे असाधारण उपाय की ओर ले आया है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा मौसम परिस्थितियां क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के लिए उपयुक्त नहीं हैं और यही वजह है कि मंगलवार को हुआ प्रयोग नाकाम साबित हुआ।
क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसके जरिए ऐसे बादलों से बारिश कराई जाती है जिनमें पहले से पर्याप्त नमी मौजूद हो। इसमें विमान के जरिए बादलों के भीतर सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या कैल्शियम क्लोराइड जैसे रसायन छोड़े जाते हैं। ये रसायन जलवाष्प को संघनित करके छोटी बूंदों में बदलते हैं, जो मिलकर वर्षा का रूप ले सकती हैं।
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हालांकि, यह प्रक्रिया तभी सफल होती है जब वातावरण में पर्याप्त नमी और बादलों में ऊर्ध्वाधर विकास हो। साफ आसमान या सूखी हवा में क्लाउड सीडिंग का कोई असर नहीं होता।
“अभी समय सही नहीं”
यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग से जुड़े मौसम वैज्ञानिक डॉ. अक्षय देओरास के मुताबिक “क्लाउड सीडिंग कोई जादू नहीं है जो हर स्थिति में बारिश करा दे। फिलहाल दिल्ली-एनसीआर के ऊपर पर्याप्त नमी नहीं है। आसमान में बादल जरूर हैं, लेकिन वे बारिश कराने लायक नहीं हैं।”
उनके अनुसार, सर्दियों में क्लाउड सीडिंग तभी की जानी चाहिए जब पश्चिमी विक्षोभ के साथ वर्षा वाले बादल सक्रिय हों। वरना यह प्रयोग केवल दिखावा बनकर रह जाएगा।
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IIT कानपुर की रिपोर्ट ने खोला सच
IIT कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन परिस्थितियों में दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की गई, वे पूरी तरह अनुकूल नहीं थीं। बाहरी एजेंसियों ने 27 से 29 अक्टूबर के बीच मौसम को “कुछ हद तक उपयुक्त” बताया था, लेकिन वास्तविक नमी केवल 10–15% थी, जो क्लाउड सीडिंग के लिए बहुत कम है।
दो उड़ानें, दो घंटे की विंडो
पहली उड़ान: IIT कानपुर से दोपहर 12:13 बजे टेकऑफ, 2:30 बजे मेरठ में लैंड। करीब 3-4 किलो सीडिंग मिश्रण बादलों में छोड़ा गया।
दूसरी उड़ान: 3:45 बजे मेरठ से उड़ी और 4:45 बजे उतरी, जिसमें 4 किलो सीडिंग मटेरियल का इस्तेमाल हुआ।
रिपोर्ट के अनुसार, सीडिंग के बाद केवल 0.1 मिमी बूंदाबांदी नोएडा में दर्ज हुई यानी असर लगभग नगण्य रहा।
प्रदूषण में मामूली सुधार, लेकिन बारिश नहीं
रिपोर्ट में बताया गया कि पहली सीडिंग के बाद पीएम 2.5 में 6–10% और पीएम 10 में 14–21% की गिरावट दर्ज की गई। जबकि दूसरी उड़ान के बाद पीएम 2.5 में 1–4% और पीएम 10 में 14–15% की कमी आई।
यह सुधार वास्तविक वर्षा से नहीं बल्कि हवा में बढ़ी नमी के कारण कणों के बैठने (particulate settling) से हुआ।
मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में पीएम 2.5 का स्तर क्रमशः 221, 230 और 229 से घटकर 207, 206 और 203 हुआ, जबकि पीएम 10 का स्तर 209 से घटकर 177 तक पहुंचा।
भविष्य के लिए सुझाव
IIT कानपुर ने कहा कि क्लाउड सीडिंग तभी की जानी चाहिए जब वातावरणीय नमी 60% से अधिक हो और बादल “विकसित अवस्था” में हों। इसके अलावा, प्रत्येक प्रयास के बाद मिट्टी और वायु के नमूने लेकर रासायनिक अवशेषों का परीक्षण अनिवार्य किया जाए। हालांकि, फिलहाल दिल्ली में हुए प्रयोग से यह साफ है कि कृत्रिम बारिश प्रदूषण का तात्कालिक समाधान नहीं बन सकती।
सरकार की दलील बनाम विज्ञान की हकीकत
दिल्ली सरकार का तर्क है कि दिवाली के बाद पराली जलाने और ठंडी हवा की स्थिरता से प्रदूषण चरम पर पहुंच गया है। ऐसे में क्लाउड सीडिंग एक संभावित राहत हो सकती है, लेकिन मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि बिना उचित बादलों और नमी के यह प्रयास “वैज्ञानिक रूप से गलत” है और इससे केवल संसाधनों की बर्बादी होती है।

