Diwali 2025: आखिर दिवाली को क्यों खेला जाता है जुआ? जानें इसके पीछे की बड़ी वजह

दीवाली को रोशनी, खुशियों और समृद्धि का त्योहार माना जाता है। लेकिन इस दिन एक और परंपरा भी देखने को मिलती है-जुआ खेलने की। बहुत से लोग दीवाली की रात ताश या जुए का खेल खेलते हैं, और इसे शुभ मानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रथा की शुरुआत कहाँ से हुई?

Updated : 14 October 2025, 8:13 PM IST

New Delhi: देश में इस समय कापी उत्साह दिख रहा है, दीवाली को रोशनी, खुशियों और समृद्धि का त्योहार माना जाता है। लेकिन इस दिन एक और परंपरा भी देखने को मिलती है-जुआ खेलने की। बहुत से लोग दीवाली की रात ताश या जुए का खेल खेलते हैं, और इसे शुभ मानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रथा की शुरुआत कहाँ से हुई?

दिवाली पर ही क्यों खेलते हैं जुआ?
मान्यता है कि माता पार्वती और भगवान शिव के बीच सबसे पहले दीवाली की रात ताश का खेल खेला गया था। माता पार्वती ने उस दिन भगवान शिव से जीत हासिल की थी, और तभी उन्होंने आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति दीवाली की रात जुआ खेलेगा, उसके घर सालभर लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। इसी कथा के चलते यह परंपरा आज तक जारी है।
पांडवों ने भी जुए का खेल खेला
जानकारी के मुताबिक,  दूसरी मान्यता महाभारत काल से जुड़ी है। कहा जाता है कि पांडवों ने भी जुए का खेल खेला था, हालांकि वह उनके लिए दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ। लेकिन लोगों ने इसे जीवन के उतार-चढ़ाव और भाग्य के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया।  ऐसा कहा जाता है कि  दीवाली की रात को जुआ खेलने का मतलब “भाग्य आजमाना” और आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि की कामना करना माना जाता है।
नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय
वहीं  आज के समय में यह परंपरा मनोरंजन का रूप ले चुकी है, जहां परिवार और दोस्त मिलकर ताश खेलते हैं। हालांकि इसे केवल सीमित और शुभ भाव से खेला जाना चाहिए, क्योंकि दीवाली का असली अर्थ अंधकार पर प्रकाश और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय है। यानी, दीवाली पर जुआ खेलने की परंपरा सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि आस्था, भाग्य और उत्सव का प्रतीक बन चुकी है। लेकिन आज के समय जुआ  खेलने  को  लेकर जिस तरह खबर आती वह काफी हैरान करने वाली होती है।

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  • New Delhi

Published : 
  • 14 October 2025, 8:13 PM IST