New Delhi: दिल्ली में AQI यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) आमतौर पर अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से बढ़ना शुरू हो जाता है, जब मौसम बदलता है और सर्दी का असर दिखने लगता है। नवंबर की शुरुआत तक हवा की रफ्तार कम हो जाती है और प्रदूषक तत्व जमीन के करीब जमने लगते हैं। इस साल भी दीपावली से पहले ही दिल्ली-एनसीआर में AQI 400 के पार पहुंच गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।
दिल्ली में कब से बढ़ना शुरू हुआ AQI (Air Quality Index)
1. 1990 का दशक: शुरुआत
- दिल्ली में 90 के दशक की शुरुआत तक हवा की गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर थी।
- लेकिन तेजी से बढ़ती जनसंख्या, वाहन संख्या और औद्योगिकीकरण के कारण हवा में धूल और धुएं की मात्रा बढ़ने लगी।
- 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की बिगड़ती हवा पर चिंता जताई और सरकार को कदम उठाने के निर्देश दिए।
2. 2000 के दशक की शुरुआत: सुधार की कोशिशें
- 2001 में दिल्ली सरकार ने अदालत के आदेश पर सभी बसों, ऑटो और टैक्सियों को CNG (Compressed Natural Gas) में बदलने का अभियान शुरू किया।
- शुरुआती सालों में इसका असर दिखा और दिल्ली का AQI कुछ सालों तक संतोषजनक रहा।
- लेकिन निजी वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या और लगातार निर्माण कार्यों ने यह सुधार ज्यादा समय तक नहीं टिकने दिया।
3. 2010 के बाद: फिर बढ़ने लगा प्रदूषण
- 2010 के बाद से दिल्ली-एनसीआर में वाहन, निर्माण और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आई।
- 2015 से पराली जलाने का असर भी स्पष्ट दिखने लगा। पंजाब और हरियाणा में फसल कटाई के बाद खेतों में जलने वाली पराली का धुआं दिल्ली की हवा में घुलने लगा।
- 2016 में पहली बार दिल्ली में AQI “Severe” (गंभीर) श्रेणी में 450 के पार पहुंचा, जिससे सरकार को आपात कदम उठाने पड़े।
4. 2016 में GRAP की शुरुआत
- बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए “Graded Response Action Plan (GRAP)” लागू किया गया।
- इस योजना में AQI के स्तर के अनुसार अलग-अलग कदम तय किए गए, जैसे निर्माण कार्य रोकना, स्कूल बंद करना, पुरानी गाड़ियों पर रोक आदि।
- हर साल अक्टूबर से जनवरी तक GRAP चरणों में लागू किया जाता है।
5. 2017 से अब तक: लगातार संकट
- हर सर्दी के मौसम में दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है। नवंबर और दिसंबर में AQI अक्सर 400-500 के बीच रहता है।
- सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने कई बार दिल्ली सरकार और केंद्र को कठोर कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
- ऑड-ईवन स्कीम, स्मॉग टावर, धूल नियंत्रण मशीनें, इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रचार और निर्माण पर अस्थायी रोक जैसे कदम उठाए गए हैं।
6. मौजूदा स्थिति (2025)
- 2025 में भी दिल्ली-एनसीआर की हवा में सुधार नहीं दिख रहा।
- हर साल अक्टूबर से जनवरी के बीच वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” या “गंभीर” स्तर तक पहुंच जाती है।
- पराली जलाने, ठंडी हवा की धीमी गति, निर्माण धूल और वाहनों का उत्सर्जन अभी भी मुख्य कारण हैं।
क्यों बढ़ता है AQI (वायु प्रदूषण के बढ़ने के कारण)
- पराली जलाना: पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसल कटाई के बाद किसान खेतों में पराली जलाते हैं। इसका धुआं हवा के साथ दिल्ली तक पहुंचता है।
- वाहनों का धुआं: दिल्ली में 1 करोड़ से ज्यादा वाहन चल रहे हैं। इनमें से कई पुराने वाहन ज़हरीला धुआं छोड़ते हैं।
- निर्माण कार्य: मेट्रो, बिल्डिंग और सड़कों के निर्माण से निकलने वाली धूल भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है।
- औद्योगिक धुआं: NCR के कई इलाकों में चलने वाली फैक्ट्रियां और थर्मल पावर प्लांट लगातार हवा में प्रदूषक छोड़ते हैं।
- मौसम और हवा की दिशा: सर्दियों में हवा की गति कम हो जाती है और प्रदूषक जमीन के पास जम जाते हैं, जिससे AQI तेजी से बढ़ता है।
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AQI बढ़ना कितना खतरनाक है?
AQI (Air Quality Index) को 0 से 500 के स्केल पर मापा जाता है।
- 0-50: अच्छी हवा
- 51-100: संतोषजनक
- 101-200: हल्का प्रदूषण
- 201-300: मध्यम से खराब
- 301-400: बहुत खराब
- 401-500: गंभीर और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक
जब AQI 400 या उससे ऊपर पहुंचता है, तो यह बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और अस्थमा रोगियों के लिए बेहद खतरनाक होता है। इससे सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, खांसी, गले में दर्द और थकान जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
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AQI को कैसे किया जाता है कंट्रोल
सरकार और लोगों, दोनों की जिम्मेदारी है कि वायु प्रदूषण को कम किया जाए। इसके लिए कई उपाय किए जाते हैं
- ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP): दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर यह प्लान लागू किया जाता है। इसमें निर्माण कार्यों पर रोक, स्कूल बंद करना, पुराने वाहनों पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए जाते हैं।
- सड़कों पर पानी का छिड़काव: धूल कम करने के लिए दिल्ली नगर निगम और PWD नियमित रूप से सड़कों पर पानी का छिड़काव करते हैं।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल: निजी गाड़ियों के बजाय मेट्रो, बस या साझा टैक्सी का उपयोग करना प्रदूषण घटाने में मदद करता है।
- ग्रीन कवर बढ़ाना: पेड़ लगाना और पार्कों की देखभाल करना हवा को शुद्ध रखने का सबसे असरदार तरीका है।
- पेट्रोल-डीजल की जगह CNG और EV का उपयोग: इलेक्ट्रिक वाहनों और CNG आधारित सिस्टम से उत्सर्जन में भारी कमी आती है।

