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हर साल 12 जून को जब ‘बाल श्रम निषेध दिवस’ आता है, तब हम फिर से वही सवाल दोहराते हैं- ‘बचपन कहाँ खो गया?’ लेकिन इस बार जरूरत है कि हम सवाल के साथ-साथ समाधान को भी सामने रखें। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी खबर
मज़दूरी में उलझा बचपन (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
नई दिल्ली: आज जब भारत ‘विकसित राष्ट्र’ बनने के सपने देख रहा है, तब सोचिए- क्या ऐसे देश का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है जहाँ लाखों बच्चे अपनी किताबों की जगह औजार उठा रहे हैं? बाल मजदूरी अब सिर्फ एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक विकास के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट बन चुकी है।
कई उद्योगों, घरेलू कामों, चाय दुकानों और निर्माण स्थलों पर बाल मजदूर दिख जाना आम बात हो गई है। वजह- सस्ता श्रम। लेकिन क्या हम इस “सस्ते” के बदले बहुत महँगी कीमत नहीं चुका रहे? एक बच्चा अगर आज शिक्षा से वंचित रहता है, तो वह कल रोजगार नहीं पाएगा। वह करदाता नहीं बन पाएगा, बल्कि सरकार पर निर्भर एक और आंकड़ा बन जाएगा।
बाल श्रम से बचाए गए बच्चों को जब शिक्षा और पोषण मिलता है, तो वे केवल खुद को नहीं, बल्कि पूरे समाज को आगे बढ़ाते हैं। इसलिए बाल श्रम को खत्म करना कोई ‘भावुकता’ नहीं, बल्कि दीर्घकालिक निवेश है- भारत के मानव संसाधन में।
बच्चा पाठशाला का हकदार है, पत्थर ढोने का नहीं (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और संशोधन 2016 के तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराना गैरकानूनी है। लेकिन कानून अकेला कितना प्रभावी हो सकता है, जब भूख और गरीबी उसके सामने खड़ी हो?
यहाँ पर सरकारी योजनाएं, सिविल सोसाइटी और स्थानीय समुदायों का एकसाथ आना जरूरी हो जाता है। सरकारी प्रयासों जैसे समग्र शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना या पीएम पोषण योजना को जमीनी स्तर पर ठीक से लागू करना और समाज के हर वर्ग को इसमें सहभागी बनाना अनिवार्य है।
सबसे पहले, सामाजिक सोच बदलनी होगी। बाल मजदूरी को “गरीब की मजबूरी” मानना बंद करना होगा और इसे “बचपन की हत्या” के रूप में देखना होगा।
दूसरा, स्थानीय निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा, जैसे कि ग्राम पंचायत स्तर पर बाल कल्याण समितियां।
तीसरा, स्कूलों को सिर्फ भवन नहीं, प्रेरणा का केंद्र बनाना होगा, जहाँ बच्चा खुद चलकर आए, न कि सिर्फ मिड डे मील के लिए।
बचपन की कब्र नहीं, सपनों की उड़ान चाहिए (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
किसी बच्चे को मजदूरी करते देखें, तो 1098 चाइल्डलाइन पर तुरंत सूचना दें।
अपने मोहल्ले, गली या कॉलोनी में बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अभियान चलाएं।
NGOs या सरकारी प्रोजेक्ट्स से जुड़कर वॉलंटियरिंग करें।
सोशल मीडिया पर #EndChildLabour जैसे हैशटैग के साथ अवेयरनेस फैलाएं।
बाल मजदूरी को देखकर आंखें फेर लेना आसान है, लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक वही है जो नज़र अंदाज़ नहीं करता। क्योंकि किसी एक बच्चे का बचाया गया बचपन, हमारे पूरे समाज के भविष्य को बेहतर बना सकता है।