New Delhi: संसद में बुधवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए उन विधायी प्रस्तावों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया है, जिनका उद्देश्य गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या अन्य जन प्रतिनिधियों को अयोग्य घोषित करने की प्रक्रिया तय करना है। लोकसभा अध्यक्ष ने इस समिति की अध्यक्षता की जिम्मेदारी भाजपा सांसद अपराजिता सारंगी को सौंपी है।
इन विधेयकों की समीक्षा करेगी अपराजिता सारंगी
पूर्व आईएएस अधिकारी रह चुकीं और वर्तमान में भुवनेश्वर से दूसरी बार सांसद चुनी गई अपराजिता सारंगी अब 31 सदस्यीय संयुक्त समिति का नेतृत्व करेंगी। यह समिति तीन प्रमुख विधेयकों संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025, जम्मू एंड कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक 2025 की विस्तृत समीक्षा करेगी।
क्या काम करेंगी अपराजिता सारंगी
जेपीसी का गठन ऐसे समय में हुआ है, जब राजनीति में जवाबदेही और नैतिकता पर चर्चा अपने चरम पर है। प्रस्तावित संशोधन विशेष रूप से उस स्थिति को संबोधित करता है जिसमें देश का प्रधानमंत्री या कोई मुख्यमंत्री गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार हो या मुकदमे का सामना कर रहा हो। ऐसे मामलों में उन्हें अस्थायी या स्थायी अयोग्यता देने के प्रावधान पर विचार किया जाएगा।
कौन-कौन हैं जेपीसी में शामिल
लोकसभा से समिति में 21 सदस्य और राज्यसभा से 10 सदस्य शामिल किए गए हैं। लोकसभा सदस्यों में रविशंकर प्रसाद, भर्तृहरि महताब, अनुराग सिंह ठाकुर, विष्णु दयाल राम, डी.के. अरुणा, पुरुषोत्तमभाई रूपाला, सुप्रिया सुले, असदुद्दीन ओवैसी और हरसिमरत कौर बादल जैसे वरिष्ठ नाम शामिल हैं। राज्यसभा से बृजलाल, उज्ज्वल निकम, नबाम रेबिया, नीरज शेखर, मनन कुमार मिश्रा, डॉ. के. लक्ष्मण और लेखिका सुधा मूर्ति जैसे प्रतिष्ठित सदस्य समिति का हिस्सा हैं।
जेपीसी का उद्देश्य और कार्यप्रणाली
समिति का मुख्य कार्य संविधान संशोधन प्रस्ताव की जांच करना है, जिसके तहत शीर्ष राजनीतिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की जवाबदेही तय करने और भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था सुनिश्चित करने की दिशा में नए कानूनी ढांचे की सिफारिशें की जाएंगी। समिति अपने विचार-विमर्श के दौरान कानूनी विशेषज्ञों, संवैधानिक विद्वानों, न्यायविदों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से परामर्श करेगी ताकि एक संतुलित और न्यायसंगत सिफारिश तैयार की जा सके।
समर्थन और विरोध दोनों के स्वर
विधेयक के समर्थकों का कहना है कि यह कदम भारतीय लोकतंत्र को और पारदर्शी तथा जवाबदेह बनाएगा। उनका तर्क है कि जब आम जनप्रतिनिधि पर आरोप लगने पर अयोग्य ठहराया जा सकता है तो देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं पर भी यही नियम लागू होना चाहिए। वहीं, आलोचकों का मत है कि इस कानून का राजनीतिक दुरुपयोग संभव है और इससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच संवैधानिक संतुलन पर असर पड़ सकता है।
भविष्य की दिशा तय करेगी समिति
जेपीसी की सिफारिशें इस बात को परिभाषित कर सकती हैं कि भविष्य में राजनीतिक जवाबदेही और आपराधिक दायित्व के बीच रेखा कहां खींची जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समिति 2025 की सबसे महत्वपूर्ण संसदीय प्रक्रियाओं में से एक साबित हो सकती है। समीति अपनी रिपोर्ट तैयार कर संसद में प्रस्तुत करेगी, जिसके बाद इन विधेयकों पर विस्तृत चर्चा और पारित होने की प्रक्रिया शुरू होगी।

