अरावली पर्वतमाला क्यों भारत के पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है? सुप्रीम कोर्ट के हालिया दखल, अरावली विवाद की पूरी टाइमलाइन और यह प्राचीन पर्वत श्रृंखला कैसे रेगिस्तान, प्रदूषण और जल संकट से देश को बचाती है, पूरी जानकारी पढ़ें।

अरावली हिल्स (Img Source: google)
New Delhi: अरावली पर्वतमाला आज भारत के सामने खड़े सबसे बड़े पर्यावरणीय सवालों में से एक बन चुकी है। दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल अरावली पर्वतमाला सिर्फ पहाड़ों का समूह नहीं, बल्कि उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन की रीढ़ है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अरावली को लेकर बहस एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर तेज हो गई है।
20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की उस समिति की सिफारिश को स्वीकार किया, जिसमें 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली मानने की बात कही गई थी। इस फैसले के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में विरोध शुरू हो गया। 21 नवंबर से लगातार आंदोलन, प्रदर्शन और राजनीतिक बयान सामने आने लगे।
16 दिसंबर को ‘सेव अरावली अभियान’ से राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जुड़े। 20 और 22 दिसंबर को उदयपुर सहित कई जिलों में वकीलों और सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन किए। 25 दिसंबर को केंद्र सरकार ने अरावली क्षेत्र में नई खानों पर रोक लगाई, लेकिन 27 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वतः संज्ञान लिया और 29 दिसंबर को अपने ही आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी।
Aravalli Controversy: अरावली विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने लगाया स्टे, अब इस दिन होगी अगली सुनवाई
अरावली पर्वतमाला थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर फैलने से रोकती है। अगर यह प्राकृतिक दीवार कमजोर होती है तो दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी यूपी तक मरुस्थलीकरण का खतरा बढ़ सकता है।
अरावली दिल्ली-एनसीआर के लिए प्राकृतिक फेफड़ों की तरह काम करती है। यह हवा को शुद्ध करने, प्रदूषण कम करने और तापमान को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती है। इसके बिना राजधानी क्षेत्र का AQI और भी खतरनाक स्तर पर पहुंच सकता है।
चंबल, साबरमती और लूणी जैसी नदियों का उद्गम अरावली से जुड़ा है। यह पर्वतमाला वर्षा जल को रोककर भूजल स्तर बढ़ाने में मदद करती है। अरावली के नष्ट होने से जल संकट और गहरा सकता है।
अरावली मानसून की नमी को रोककर और हवाओं की दिशा बदलकर उत्तर भारत की जलवायु को संतुलित रखती है। इससे कृषि, वर्षा और सामान्य जीवन संभव होता है।
अरावली तेंदुआ, सियार, नीलगाय, कई दुर्लभ पक्षियों और वनस्पतियों का घर है। यह एक महत्वपूर्ण बायोडायवर्सिटी ज़ोन है, जिसका नुकसान पूरे इकोसिस्टम को प्रभावित करेगा।
करीब 2 अरब साल पुरानी अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक है। यह भारत की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है।