

सावन सिर्फ भगवान शिव की आराधना का महीना नहीं, बल्कि प्रकृति और शरीर के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद खास समय है। जानिए कैसे सावन में छिपा है सेहत और संतुलन का राज।
सावन का असली चमत्कार
New Delhi: सावन का महीना भारतीय संस्कृति और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। यह समय विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए जाना जाता है, जब लाखों भक्त उपवास रखते हैं, जलाभिषेक करते हैं और मंदिरों में दर्शन के लिए लंबी कतारें लगाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन का महत्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है? इस महीने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं जो इसे सेहत, पर्यावरण और जीवनशैली के लिहाज से बेहद खास बनाते हैं।
सावन का आगमन होते ही मानसून पूरे जोर पर होता है। लगातार होने वाली बारिश से धूल-मिट्टी और प्रदूषण हवा से धुल जाते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है। हरियाली के कारण पेड़-पौधे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो हवा को और भी ताजा और स्वच्छ बनाता है। यह बदलाव हमारे श्वसन तंत्र के लिए बेहद फायदेमंद होता है, खासकर शहरों में रहने वाले लोगों के लिए, जहां प्रदूषण का स्तर ज्यादा रहता है।
मानसून के दौरान वातावरण में बढ़ी हुई नमी के कारण पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसी वजह से इस समय उपवास रखने, फलाहार करने और हल्का भोजन लेने की परंपरा शुरू हुई। वैज्ञानिक दृष्टि से यह डिटॉक्सिफिकेशन यानी शरीर को अंदर से साफ करने की प्रक्रिया है। यह न केवल पाचन तंत्र को आराम देती है बल्कि बदलते मौसम के अनुसार शरीर को ढलने में मदद करती है।
सावन के दौरान जलजनित रोगों जैसे डेंगू, मलेरिया, हैजा आदि का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में उबला हुआ पानी पीना, तुलसी का सेवन करना या गंगाजल मिलाना सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। ये उपाय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं और संक्रमण से बचाते हैं।
सावन की हरियाली, बारिश की रिमझिम और ठंडी हवा मानसिक रूप से शांति देती है। इस मौसम में ध्यान, पूजा और शास्त्रों का पाठ करना न सिर्फ धार्मिक रस्म है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि प्रकृति के बीच समय बिताने से तनाव, डिप्रेशन और चिंता में कमी आती है।
सावन में महादेव की पूजा (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
सावन की बारिश भूजल स्तर को रिचार्ज करने का स्वाभाविक मौका देती है। तालाब, नदियां, और कुएं भरते हैं और जलस्रोत पुनर्जीवित होते हैं। यह समय जल संरक्षण की दृष्टि से बेहद अहम होता है। ग्रामीण भारत में आज भी लोग इस मौसम को जल संग्रहण और खेती की तैयारी से जोड़कर देखते हैं।
सावन सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली में वैज्ञानिक सोच का हिस्सा भी है। आयुर्वेद, पर्यावरण विज्ञान और मनोविज्ञान- तीनों ही सावन से जुड़े रीति-रिवाजों के पीछे छिपे हैं। यही कारण है कि यह महीना हर दृष्टि से संतुलन और सुधार का प्रतीक माना जाता है।
सावन का महीना केवल भक्ति और पूजा-पाठ का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और मानसिक संतुलन का भी समय है। हमारी परंपराओं में छिपी वैज्ञानिक सोच को समझना और उसे अपनाना आज के समय में और भी जरूरी हो गया है। तो इस सावन, आस्था के साथ विज्ञान को भी अपनाएं और प्रकृति के साथ तालमेल में जीवन जिएं।