Maharashtra: महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर अपने भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे से मुलाकात की है। यह मुलाकात ऐसे समय हुई है जब महाविकास अघाड़ी (MVA) में मनसे को शामिल करने को लेकर अटकलें तेज हैं। खास बात यह है कि कांग्रेस ने इस संभावित गठबंधन पर उद्धव से स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।
यह अहम बैठक आज बुधवार, 10 सितंबर को राज ठाकरे के आवास पर हुई, जिसमें उद्धव ठाकरे के साथ शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत और अनिल परब भी मौजूद थे। माना जा रहा है कि यह केवल आपसी रिश्तों की मुलाकात नहीं थी, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को साधने की गंभीर कोशिश थी।
कांग्रेस ने मांगा जवाब
इससे पहले कांग्रेस नेताओं और उद्धव ठाकरे की एक बैठक हुई थी, जिसमें राज ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन पर चर्चा हुई। कांग्रेस की ओर से स्पष्ट रूप से सवाल पूछा गया कि क्या उद्धव ठाकरे MVA में बने रहेंगे और क्या वह राज ठाकरे को भी गठबंधन में लाना चाहते हैं?
सूत्रों के अनुसार, उद्धव ठाकरे ने MNS प्रमुख को गठबंधन में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है, जिस पर कांग्रेस नेताओं ने कहा कि अंतिम फैसला दिल्ली हाईकमान लेगा। महाराष्ट्र कांग्रेस ने यह भी साफ किया है कि मनसे की विचारधारा और पूर्व स्टैंड को देखते हुए फैसला सोच-समझकर लिया जाएगा।
दशहरा रैली पर भी हो सकती है चर्चा
एक और अहम वजह इस मुलाकात की मानी जा रही है- दशहरा की पारंपरिक जनसभा, जो बालासाहेब ठाकरे के समय से शिवाजी पार्क में होती आ रही है। शिवसेना के बंटवारे के बाद अब उद्धव ठाकरे ही शिवाजी पार्क में सभा करते हैं जबकि एकनाथ शिंदे गुट ने दूसरी जगह सभा करनी शुरू की है। अटकलें हैं कि उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे को इस साल की दशहरा रैली में साथ मंच साझा करने का प्रस्ताव दिया है।
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बीएमसी चुनाव पर नजर
विशेषज्ञ मानते हैं कि उद्धव और राज ठाकरे के बीच यदि कोई चुनावी तालमेल होता है तो उसका मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव पर बड़ा असर हो सकता है। मनसे का सीमित लेकिन मजबूत वोटबैंक कुछ सीटों पर परिणाम बदल सकता है। इसलिए यह मुलाकात और संभावित गठबंधन सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, रणनीतिक भी है।
क्या दशहरे तक साफ होगी तस्वीर?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दशहरा तक गठबंधन की स्थिति साफ हो जाएगी। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का साथ आना न केवल पारिवारिक एकता का संकेत हो सकता है, बल्कि यह महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत भी बन सकता है।

