Durlabh Prasad Ki Dusri Shadi Review: जिंदगी को नया मोड़ देने की कहानी, कम शोर में गहरी बात कहती फिल्म

दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी एक सधी हुई हिंदी फिल्म है, जो दूसरी शादी, उम्र और सामाजिक सोच पर सवाल उठाती है। संजय मिश्रा और महिमा चौधरी की दमदार परफॉर्मेंस के साथ जानें फिल्म का पूरा रिव्यू।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 21 December 2025, 2:15 PM IST

Mumbai: कई बार फिल्में किसी बड़े सामाजिक मुद्दे को ईमानदार इरादे के साथ उठाती हैं, लेकिन उसे बहुत शोर किए बिना, सहज तरीके से कहने की कोशिश करती हैं। दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी ऐसी ही एक फिल्म है। यह कहानी दूसरी शादी, उम्र, अकेलेपन और रिश्तों को नए नजरिए से देखने की कोशिश करती है।

कहानी क्या है?

कहानी बनारस की पृष्ठभूमि में रची गई है। मुरली प्रसाद (व्योम यादव) अपने विधुर पिता दुर्लभ प्रसाद (संजय मिश्रा) और मामा (श्रीकांत वर्मा) के साथ रहता है। मुरली महक (पल्लक ललवानी) से प्यार करता है, लेकिन लड़की का परिवार एक ऐसे घर में रिश्ता करने से इनकार कर देता है जहां कोई महिला नहीं है।

यहीं से मुरली अपने पिता की दूसरी शादी कराने का फैसला करता है। इस राह में उसे सामाजिक परंपराओं, लोगों की सोच और खुद पिता के विरोध का सामना करना पड़ता है। इसी दौरान दुर्लभ की मुलाकात अपनी पुरानी प्रेमिका बबीता (महिमा चौधरी) से होती है। अब सवाल यही है कि क्या मुरली अपने पिता और अपने प्यार-दोनों की जिंदगी एक साथ संवार पाएगा?

फिल्म की सबसे बड़ी ताकत

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है बनारस को सिर्फ लोकेशन नहीं, बल्कि कहानी का एक जीवंत किरदार बनाना। घाट, गलियां और शहर की रोजमर्रा की हलचल कहानी को गहराई देती है। सिनेमेटोग्राफर अनिल सिंह ने वाराणसी को बेहद संवेदनशील और खूबसूरत तरीके से कैमरे में उतारा है।

दुल्हन की तलाश के दौरान ज्योतिषी, देसी टिंडर, पर्चे और वर-वधू मेले जैसे प्रसंग हल्की-फुल्की कॉमेडी रचते हैं। हालांकि इन ट्रैक्स में रोमांच की पूरी संभावनाएं होने के बावजूद कहानी बहुत ज्यादा उछाल नहीं ले पाती।

निर्देशक सिद्धांत राज सिंह की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने फिल्म को जरूरत से ज्यादा ड्रामेटिक या लाउड नहीं बनने दिया। यही संयम फिल्म को देखने लायक बनाता है।

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कहानी में मोड़ और कमजोर कड़ियां

मध्यांतर से ठीक पहले बबीता की एंट्री के बाद कहानी थोड़ी रफ्तार पकड़ती है। दुर्लभ और बबीता की दोबारा बढ़ती नजदीकियां, सामाजिक ताने और भावनात्मक टकराव सामने आते हैं। वैलेंटाइन डे पर वायरल वीडियो के बाद महक के पिता का नजरिया बदलना कहानी में अहम मोड़ लाता है, लेकिन यह पूरा ट्रैक कुछ जल्दबाजी में सिमटता हुआ महसूस होता है।

फिल्म अधेड़ उम्र के प्रेम, आत्मनिर्भर महिलाओं को लेकर समाज की सोच और माता-पिता द्वारा बच्चों की खुशी को प्राथमिकता देने जैसे मजबूत मुद्दे उठाती है, मगर इन्हें और गहराई से टटोलने का मौका चूक जाती है।

अभिनय कैसा है?

संजय मिश्रा दुर्लभ प्रसाद के किरदार में पूरी तरह फिट बैठते हैं। वे पिता, प्रेमी और उलझन में पड़े इंसान-तीनों रूपों में असर छोड़ते हैं। महिमा चौधरी आत्मनिर्भर बबीता के रूप में सहज हैं, लेकिन कुछ भावनात्मक दृश्यों में प्रभाव थोड़ा कमजोर पड़ता है।

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व्योम यादव ने अपने किरदार को आत्मविश्वास से निभाया है, जबकि पल्लक ललवानी ईमानदारी से महक को जीती नजर आती हैं, हालांकि दोनों की केमिस्ट्री बहुत मजबूत नहीं बन पाती। श्रीकांत वर्मा सहायक भूमिका में हल्का हास्य जोड़ते हैं।

Location : 
  • Mumbai

Published : 
  • 21 December 2025, 2:15 PM IST