Maharashtra: महाराष्ट्र में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव से ठीक पहले भाजपा को एक बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। उल्हासनगर से भाजपा के छह पूर्व नगरसेवकों ने अचानक पार्टी छोड़कर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उसकी स्थानीय सहयोगी पार्टी टीम ओमी कालानी (टीओके) का दामन थाम लिया। इस घटनाक्रम ने भाजपा खेमे में चिंता बढ़ा दी है।
बिहार में जीत, लेकिन महाराष्ट्र में नुकसान
एक ओर जहां बिहार में एनडीए गठबंधन ने भारी बहुमत हासिल कर सत्ता में वापसी की है, वहीं महाराष्ट्र में निकाय चुनावों से ठीक पहले इतनी बड़ी टूट भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं मानी जा रही। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि उल्हासनगर सीट का राजनीतिक संतुलन हमेशा से शहरी वोटों पर आधारित रहा है और यहां स्थानीय नेताओं की पकड़ बेहद महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में छह नेताओं का जाना भाजपा की रणनीति को कमजोर कर सकता है।
उल्हासनगर और कल्याण क्षेत्र में पड़ा असर
उल्हासनगर और कल्याण लोकसभा क्षेत्र में अगले कुछ महीनों में नगर निगम चुनाव होने हैं। इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में भाजपा नेताओं का इस्तीफ़ा देना पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। दो महीने पहले ही कालानी परिवार की पकड़ कमजोर तब हुई थी जब पांच पूर्व नगरसेवक भाजपा में शामिल हो गए थे। लेकिन अब छह नेताओं के एक साथ पार्टी छोड़कर शिवसेना और टीओके में शामिल होने से कालानी परिवार का वर्चस्व फिर से मजबूत हो सकता है।
दो शिवसेना तो चार ने थामा टीओके का दामन
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, किशोर वनवारी और मीना सोनडे शिंदे गुट की शिवसेना में शामिल हुए हैं। वहीं, जम्नु पुरसवानी, प्रकाश माखीजा, महेश सुखरामानी और चार्ली परवानी टीओके में शामिल हुए। इन नेताओं का स्वागत सांसद श्रीकांत शिंदे और टीम ओमी कालानी के प्रमुख ओमी कालानी ने किया।
जम्नु पुरसवानी: पांच बार नगरसेवक रह चुके हैं और पूर्व उपमहापौर भी रहे हैं।
प्रकाश माखीजा: चार बार स्थायी समिति के अध्यक्ष रहे हैं।
महेश सुखरामानी: महाराष्ट्र साहित्य अकादमी में राज्य मंत्री के पद पर रह चुके हैं।
चार्ली परवानी: लंबे समय से भाजपा से जुड़े रहने के बाद अब टीओके में शामिल हुए हैं।
प्रकाश माखीजा का बयान
भाजपा छोड़ने वाले प्रमुख नेता प्रकाश माखीजा ने खुलकर कहा कि उन्होंने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि “भाजपा और शिवसेना के वरिष्ठ नेता एक-दूसरे के खिलाफ काम कर रहे थे।” उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी में समन्वय की कमी थी, और कई महीनों से यह अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही थी।
निकाय चुनाव से पहले भाजपा-शिवसेना में तकरार तेज
सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र में भाजपा और शिंदे गुट के बीच तनाव उस समय बढ़ गया जब रविंद्र चव्हाण को इस वर्ष भाजपा का राज्य अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने कल्याण क्षेत्र में अपने संगठन को मजबूत करने की रणनीति अपनाई, जो कि शिंदे परिवार का परंपरागत गढ़ माना जाता है। इस दौरान कई शिंदे गुट के नेता भाजपा में शामिल हो गए। जवाब में, शिंदे गुट ने भाजपा नेताओं को अपने खेमे में शामिल कर संतुलन बनाने की कोशिश की।
‘क्या चुनाव में होगा गठबंधन का नुकसान?’
निकाय चुनाव निकट होने के कारण यह सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा और शिंदे गुट के बीच की यह खींचतान गठबंधन को नुकसान पहुंचाएगी? भाजपा से छह बड़े नेताओं का जाना राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है। उल्हासनगर में चुनाव अक्सर स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेतृत्व पर आधारित होते हैं, ऐसे में यह घटनाक्रम टीओके और शिवसेना के लिए लाभदायक साबित हो सकता है।
शिंदे गुट और टीओके का बढ़ा मनोबल
इन नेताओं के शामिल होने के बाद शिंदे गुट में उत्साह का माहौल है। टीओके प्रमुख ओमी कालानी ने कहा कि यह “जनता का विश्वास” है और आगामी चुनाव में यह उनके पक्ष में माहौल बनाएगा। दूसरी ओर, भाजपा अगले कुछ दिनों में आपात बैठकें बुलाकर इस टूट से हुए नुकसान की भरपाई करने की रणनीति बनाएगी। पार्टी इसको संगठनात्मक विस्तार के जरिए संतुलित करने की कोशिश कर रही है।

