Patna: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों में अनुशासन और एकजुटता को लेकर सख्ती बढ़ती जा रही है। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल चार नेताओं को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया है। बीजेपी ने यह कार्रवाई उन नेताओं के खिलाफ की है जिन्होंने एनडीए गठबंधन के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ने का फैसला किया।
निष्कासित नेताओं में बहादुरगंज से वरुण सिंह, गोपालगंज से अनूप कुमार श्रीवास्तव, कहलगांव से विधायक पवन यादव और बड़हरा से सूर्य भान सिंह शामिल हैं। पार्टी ने कहा कि इन नेताओं ने संगठन के दिशा-निर्देशों की अवहेलना की है और पार्टी हितों के खिलाफ जाकर चुनावी माहौल में भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश की है।
पार्टी विरोधी गतिविधियों पर निगरानी तेज
बीजेपी ने यह भी साफ किया है कि चुनावी समय में पार्टी के खिलाफ बयानबाजी या स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नामांकन जैसे कदमों को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पार्टी नेतृत्व की ओर से प्रदेश स्तर पर एक निगरानी समिति बनाई गई है जो ऐसे नेताओं की गतिविधियों पर नजर रख रही है।
सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने कई अन्य नेताओं को भी चेतावनी दी है जो अंदरखाने असंतोष जता रहे हैं या निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन दे रहे हैं।
जेडीयू ने भी दिखाई अनुशासन की मिसाल
बीजेपी से पहले एनडीए की सहयोगी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी अपने कई नेताओं पर सख्त कार्रवाई की थी। 25 अक्टूबर को जेडीयू ने पूर्व मंत्री शैलेश कुमार समेत 11 नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इन पर आरोप था कि वे चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और संगठन के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे थे।
इसके अलावा, 26 अक्टूबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच और नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया, जिनमें पूर्व मंत्री हिमराज सिंह, पूर्व विधायक गोपाल मंडल, पूर्व विधायक संजीव श्याम सिंह, महेश्वर यादव और उनके बेटे प्रभात यादव शामिल हैं।
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राजनीतिक दलों में बगावत पर कड़ी नजर
स्पष्ट है कि बिहार में एनडीए गठबंधन बगावत को किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। दोनों दलों ने यह संदेश दे दिया है कि जो भी नेता पार्टी लाइन से हटकर चलेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। चुनावी माहौल में यह सख्ती न केवल संगठन को मजबूत करने की कोशिश है, बल्कि यह भी संकेत है कि अनुशासनहीनता पर अब कोई समझौता नहीं होगा।

