नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ लगातार सुरक्षाबलों की तरफ से ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा के सीमावर्ती क्षेत्रों में हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। अब तक इस अभियान के दौरान नक्सिलयों के शीर्ष नेता बसवा राजू समेत कुल 27 नक्सलियों के शव और भारी मात्रा में हथियार बरामद किए गए हैं। अनुमान है कि अभियान के दौरान कई माओवादी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। मुठभेड़ के दौरान नक्सली हमले का बहादुरी से मुकाबला करते हुए डीआरजी के एक जवान का बलिदान हो गया। मुठभेड़ में कुछ अन्य जवानों को इस ऑपरेशन के दौरान चोटें आई हैं। सभी घायल खतरे से बाहर हैं। सर्च अभियान लगातार जारी है। सुरक्षाबललों की इस सफलता पर पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने जवानों के पराक्रम की सराहना की है। नारायणपुर और बीजापुर इलाके में नक्सलियों पर सुरक्षाबलों के जवान आज प्रलय बनकर टूटे। नक्सलियों के खिलाफ इस एक्शन में नक्सिलयों का शीर्ष नेता बसवा राजू भी मारा गया है। बसव राजू कुख्यात नक्सली रहा है उसके ऊपर डेढ़ करोड़ का इनाम है।
बसव राजू का इतिहास
देश के जाने-माने पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने स्पेशल शो “The MTA Speaks” में इसका विश्लेषण करते हुए कहा कि, 2018 में बसव राजू को नक्सल संगठन की कमान सौंपी गई थी। बसवा राजू का असली नाम नंबाला केशव राव है। उसे गगन्ना, प्रकाश और बीआर के नाम से भी जाना जाता है। उसके पिता का नाम वासुदेव राव है और वह काफी उम्रदराज है। उसकी उम्र करीब 75 साल के आसपास बताई जा रही है। उसने बीटेक की पढ़ाई की थी वह आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम का रहने वाला था। वसवा राजू खूंखार नक्सली था वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सीनियर कैडर था और दक्षिण बस्तर डिवीजनल कमेटी का चीफ था। राजू छत्तीसगढ़, ओडिशा से लेकर आंध्र प्रदेश की सीमाओं पर सक्रिय था।छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को मिली कामयाबी और 27 नक्सलियों के मारे जाने पर पीएम मोदी ने कहा कि हमें अपने सैन्य बलों पर गर्व है। हमारी सरकार माओवाद के खतरे को खत्म करने और अपने लोगों के लिए शांतिपूर्ण और प्रगतिशील जीवन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाई में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई है। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों ने 27 खूंखार माओवादियों को मार गिराया है, जिनमें सीपीआई-माओवादी के महासचिव, शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू भी शामिल है। नक्सलवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के तीन दशकों में यह पहली बार है कि हमारे बलों द्वारा एक महासचिव स्तर के नेता को मार गिराया गया है। मैं इस बड़ी सफलता के लिए हमारे बहादुर सुरक्षाबलों और एजेंसियों की सराहना करता हूँ। यह बताते हुए भी खुशी हो रही है कि ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। मोदी सरकार 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को खत्म करने के लिए संकल्पित है।
नक्सल आंदोलन की पृष्ठभूमि
अगर बात करें नक्सल आंदोलन की पृष्ठभूमि की, तो इसका इतिहास 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से शुरू हुआ था। वहाँ किसानों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के समर्थन से भूमि सुधार की मांग को लेकर विद्रोह किया था। यहीं से “नक्सलवाद” शब्द की उत्पत्ति हुई। यह आंदोलन धीरे-धीरे एक वैचारिक लड़ाई में बदल गया, जिसमें वर्ग-समानता, भूमि सुधार, और सरकारी संरचनाओं के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष को प्रमुख हथियार बनाया गया। नक्सलवाद के मुख्य कारणों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक असमानता शामिल मानी जाती है। विशेष रूप से गरीब और शोषित वर्ग के लोग, जो न्याय और विकास से वंचित हैं, वे इस विचारधारा से प्रभावित होकर आंदोलन में शामिल होते हैं। भारत में नक्सल आंदोलन के जनक माने जाने वाले कानू सान्याल ने 1967 में इस आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने तीन साथियों के साथ चीन की यात्रा की थी, जहाँ वे माओ की विचारधारा से प्रभावित हुए थे। हालांकि माओ ने खुद उन्हें भारत में उस विचारधारा की नकल न करने की सलाह दी थी। बावजूद इसके, कानू सान्याल माओ की “बंदूक के ज़ोर पर सत्ता” वाली सोच से गहराई से प्रभावित हुए।
आज, जब सुरक्षा बल नक्सलवाद को खत्म करने के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं, तब इस आंदोलन के अतीत, उसकी जड़ें और सामाजिक संरचना को समझना उतना ही जरूरी है जितना भविष्य के लिए शांति और विकास की राह को मजबूत करना। 2024 तक की जानकारी के अनुसार वर्तमान में नक्सली प्रभाव से प्रभावित राज्य अब नक्सली हिंसा मुख्य रूप से 7 राज्यों के कुछ चुनिंदा जिलों तक सीमित रह गई है:
- छत्तीसगढ़ (दक्षिण बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर आदि) – सबसे ज्यादा प्रभावित
- झारखंड (पलामू, लातेहार, गढ़वा, चतरा, गिरिडीह आदि)
- बिहार (गया, औरंगाबाद, जमुई, लखीसराय)
- ओडिशा (कंधमाल, मलकानगिरी, नुआपड़ा, कोरापुट आदि)
- महाराष्ट्र (गढ़चिरौली, गोंदिया, चंद्रपुर)
- तेलंगाना (कुछ सीमावर्ती इलाके – मुलुगु, भद्राद्री कोठागुडेम)
- आंध्र प्रदेश (पूर्वी घाट के कुछ सीमित वन क्षेत्र – विशाखापट्टनम एजेंसी इलाका)
पहले नक्सल प्रभाव वाले अन्य राज्य जो अब लगभग मुक्त हो चुके हैं:
- पश्चिम बंगाल (पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुरा, पुरुलिया – अब शांत)
- उत्तर प्रदेश (सोनभद्र, चंदौली – अब नियंत्रण में)
- मध्य प्रदेश (बालाघाट – अब कमज़ोर प्रभाव)
- केरल (वायनाड, पलक्कड़ के जंगल – अब नाममात्र उपस्थिति)
विशेष जानकारी:
- 2010 में भारत के 223 जिलों में नक्सल प्रभाव था।
- 2023-24 तक यह संख्या घटकर लगभग 45 जिलों तक सिमट गई है।
- गृह मंत्रालय ने “अत्यधिक नक्सल प्रभावित जिलों” की संख्या भी घटा दी है – अब यह 25 से भी कम रह गई है।
बड़े हमले
भारत में नक्सलियों ने दशकों से कई बड़े और जानी-मानी हमले किए हैं, जिनमें सुरक्षाबलों के जवान, पुलिसकर्मी, अधिकारियों के साथ-साथ आम नागरिक भी प्रभावित हुए हैं। यहां कुछ प्रमुख और ऐतिहासिक नक्सली हमलों का विवरण दिया गया है, जिनसे नक्सली आंदोलन की गंभीरता और खतरनाक प्रकृति समझी जा सकती है:
1. जगदलपुर बस अटैक (2010)
तारीख: 24 मई 2010
स्थान: जगदलपुर, छत्तीसगढ़
नक्सलियों ने एक बस पर हमला किया जिसमें सैकड़ों लोग सवार थे। इस हमले में लगभग 70 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर आम नागरिक थे। यह हमला उस समय सबसे खतरनाक माना गया था। इस हमले में महिलाओं और बच्चों समेत कई निर्दोष लोग घायल हुए।
2. दंतेवाड़ा पुलिस कैंप हमला (2010)
तारीख: 6 अप्रैल 2010
स्थान: दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़
लगभग 300 नक्सलियों ने पुलिस कैंप पर घात लगाकर हमला किया। इस हमले में लगभग 76 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। यह हमला पुलिस बल के खिलाफ सबसे बड़ा और घातक हमला माना जाता है।
3. सुकमा एनकाउंटर हमला (2017)
तारीख: 24 अप्रैल 2017
स्थान: सुकमा, छत्तीसगढ़
नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर घात लगाकर हमला किया जिसमें 25 जवान शहीद हुए। इस घटना को सबसे जटिल और संगठित हमला कहा गया।
4. सुकमा IED विस्फोट (2021)
तारीख: 13 मार्च 2021
स्थान: सुकमा, छत्तीसगढ़
नक्सलियों ने आईईडी विस्फोट कर CRPF के वाहन को निशाना बनाया। इस हमले में 22 जवान शहीद हुए। यह हमला छत्तीसगढ़ में कई सालों बाद सबसे बड़ा था।
5. गढ़चिरौली हमला (2019)
तारीख: 1 अप्रैल 2019
स्थान: गढ़चिरौली, महाराष्ट्र
नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर गोलीबारी की जिसमें कई जवान घायल हुए, साथ ही कुछ नक्सली भी मारे गए।
6. महाराष्ट्र के भंडारा जिले में हमला (2018)
तारीख: 15 जून 2018
स्थान: भंडारा, महाराष्ट्र
नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला किया जिसमें 2 पुलिसकर्मी शहीद हुए।
कुल आंकड़े और जानकारी:
• पिछले 20 वर्षों में नक्सली हमलों में लगभग 2000 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी और पुलिसकर्मी शहीद हुए हैं।
• नागरिकों की भी संख्या कई सौ में है, खासकर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार के प्रभावित इलाकों में।
• लगभग 300-400 नक्सली भी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों में मारे गए।
नक्सली हमले अक्सर घातक और बड़े पैमाने पर होते रहे हैं, जिनका लक्ष्य सुरक्षा बल और विकास कार्यों को बाधित करना होता है। इस हिंसा ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। हालांकि, सरकार के लगातार सख्त अभियान के कारण नक्सल हमलों में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है।