क्या सच में ताजमहल बनाने वाले मजदूरों के नहीं काटे गए थे हाथ, पढ़ें ये मजेदार खबर

ताजमहल के इतिहास पर आधारित फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ ऐतिहासिक तथ्यों और कोर्टरूम ड्रामा के जरिए कई प्रचलित दावों पर सवाल उठाती है। लेखक-निर्देशक तुषार अमरीश गोयल का कहना है कि फिल्म किसी एजेंडे पर नहीं, बल्कि गहन रिसर्च पर आधारित है।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 26 December 2025, 6:00 PM IST

Agra: ताजमहल के इतिहास को नए नजरिए से देखने वाली फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। फिल्म के रिलीज होते ही जहां एक ओर इसे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसने विवादों को भी जन्म दे दिया है। मेरठ के रहने वाले लेखक-निर्देशक तुषार अमरीश गोयल का कहना है कि यह फिल्म किसी एजेंडे से प्रेरित नहीं, बल्कि गहन रिसर्च और ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित एक कोर्टरूम ड्रामा है।

याचिका से शुरू हुई कहानी

तुषार अमरीश गोयल ने बताया कि द ताज स्टोरी की कहानी की शुरुआत ताजमहल को लेकर दायर एक याचिका से हुई। उस याचिका में दावा किया गया था कि ताजमहल मूल रूप से राजा मानसिंह का महल था, जिसे बाद में राजा जय सिंह को सौंपा गया और फिर शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की कब्र के लिए खरीदा। इसी दावे ने उन्हें गहराई से रिसर्च करने के लिए प्रेरित किया।

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ASI और ऐतिहासिक दस्तावेजों पर रिसर्च

निर्देशक के मुताबिक उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट, बादशाहनामा और कई ऐतिहासिक पुस्तकों व दस्तावेजों का अध्ययन किया। इस रिसर्च में सामने आया कि शाहजहां ने एक पहले से मौजूद इमारत को खरीदा और उसमें बदलाव व रिनोवेशन कराया। फिल्म में इन्हीं ऐतिहासिक संदर्भों के आधार पर सवाल उठाए गए हैं।

कोर्टरूम ड्रामा का अनोखा प्रयोग

तुषार गोयल ने कहा कि विषय बहस योग्य था, इसलिए इसे कोर्टरूम ड्रामा के रूप में पेश किया गया। फिल्म का करीब 50 प्रतिशत हिस्सा अदालत में घटित होता है। दर्शकों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए संवादों में हल्का हास्य भी जोड़ा गया है, जिससे गंभीर विषय बोझिल न लगे।

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परेश रावल की शर्त और भूमिका

फिल्म में कोर्टरूम के अहम किरदार के लिए परेश रावल को चुना गया। तुषार के अनुसार परेश रावल का थिएटर अनुभव इस भूमिका के लिए बिल्कुल फिट रहा। स्क्रिप्ट सुनने के बाद परेश रावल ने साफ कहा था कि फिल्म में किसी तरह का हिंदू-मुस्लिम एंगल नहीं होना चाहिए, जिसे पूरी तरह ध्यान में रखा गया।

इतिहास से जुड़े मिथकों पर सवाल

फिल्म में ताजमहल से जुड़े कई प्रचलित दावों को तथ्यात्मक आधार पर चुनौती दी गई है। 22 साल में निर्माण और 20 हजार मजदूरों के हाथ काटे जाने जैसे दावे ऐतिहासिक रूप से सही नहीं बताए गए हैं। एएसआई के अनुसार ताजमहल 17 साल में बना, जबकि बादशाहनामा में 10 साल का उल्लेख है। फिल्म में 1632 के भीषण अकाल और ताजमहल की वास्तुकला में मौजूद भारतीय प्रतीकों को भी दिखाया गया है।

पहली फीचर फिल्म, आगे की योजना

द ताज स्टोरी तुषार अमरीश गोयल की पहली फीचर फिल्म है। इससे पहले वे डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्में बना चुके हैं। 31 अक्तूबर को रिलीज हुई इस फिल्म को थिएटर में अच्छा रिस्पॉन्स मिला है और निर्देशक को उम्मीद है कि OTT पर भी दर्शक इसे पसंद करेंगे।

Location : 
  • Agra

Published : 
  • 26 December 2025, 6:00 PM IST