

भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच उर्स कमेटी ने एक बड़ा फैसला लिया है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
जालौन में उर्स कमेटी का बड़ा एलान(सोर्स-इंटरनेट)
जालौन: भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान में चल रहे तनाव के कारण हर साल की तरह इस बार भी धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का स्वरूप बदला नजर आ रहा है। खासतौर पर, हाल के दिनों में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए पहलगाम हमले और उसकी प्रतिक्रिया में भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल बढ़ गया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, जालौन जिले में उर्स कमेटी ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है, जिसके तहत इस साल उर्स का आयोजन नहीं किया जाएगा। यह फैसला समुदाय की एकजुटता और शांति बनाए रखने के मकसद से लिया गया है।
उर्स का पर्व आमतौर पर सूफी संतों की पुण्यतिथि पर मनाया जाता है। उर्स का अर्थ है 'खुशी का उत्सव', जो सूफी संतों की शिक्षाओं और उनके अमर संदेशों को याद करने का अवसर होता है। उरई के सैयद पदम शाह बाबा की दरगाह पर पिछले 45 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही थी कि हर साल इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता था। यहां पर देश-विदेश से भारी संख्या में श्रद्धालु आते थे, जो सूफी संतों की शिक्षाओं का अनुसरण करने और उनकी मजार पर मत्था टेकने के लिए उमड़ते थे।
मौजूदा तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए मुस्लिम समुदाय ने अपने इस ऐतिहासिक परंपरात्मक आयोजन को स्थगित करने का फैसला किया है। समुदाय ने अपने फैसले के समर्थन में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। उर्स कमेटी के इस फैसले का समर्थन समुदाय के सदस्यों ने किया और कहा कि वर्तमान समय में शांति और सौहार्द बनाए रखना जरूरी है। इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शहीदों के सम्मान में दो मिनट का मौन भी रखा, जिसमें उन्होंने अपने देश के शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने यह भी कहा कि यदि युद्ध की स्थिति बनती है, तो वे घायल नागरिकों और सैनिकों की रक्षा के लिए रक्तदान करेंगे। यह बयान इस बात का संकेत है कि समुदाय न केवल शांति का संदेश देना चाहता है, बल्कि देशभक्ति और जिम्मेदारी का भी परिचय दे रहा है। इस फैसले का समर्थन सदर विधायक गौरीशंकर वर्मा ने भी किया और उर्स कमेटी के साथ बैठक कर इस कदम की सराहना की।
उर्स का त्योहार सूफी संतों की पुण्यतिथि पर मनाया जाता है। इस दौरान दरगाह परिसर में कव्वाली, नात, हम्द और अन्य धार्मिक संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस आयोजन के दौरान दरगाह का वातावरण श्रद्धा और उल्लास से भर जाता है। दरगाह का संरक्षक इन रस्मों का संचालन करता है। इसके साथ-साथ आसपास मेले और बाजार भी लगते हैं, जहां श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।
इस साल के फैसले से यह स्पष्ट है कि वर्तमान परिस्थिति में समुदाय शांति और सद्भाव को प्राथमिकता दे रहा है। उर्स का स्थगित होना एक संदेश है कि हम अपने देश की सुरक्षा और एकता को सर्वोपरि मानते हैं। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में इन प्रयासों से तनाव कम होगा और देश में शांति स्थापित होगी। समुदाय का यह कदम यह दर्शाता है कि धार्मिक पर्वों को भी वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप ढाला जा सकता है, ताकि समाज में सौहार्द और भाईचारे का वातावरण बना रहे।
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