यौन उत्पीड़न मामलों में शिकायकर्ता को निष्पक्ष सुनवायी मिलनी चाहिए, आरोपियों के अधिकारों की भी रक्षा जरूरी: न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला से 12 साल तक कथित तौर पर बलात्कार करने के मामले में एक व्यक्ति को आरोप मुक्त करने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में शिकायतकर्ताओं को निष्पक्ष सुनवायी मिलनी चाहिए, वहीं आरोपियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली की जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 21 March 2023, 9:37 PM IST
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नयी दिल्ली: उच्च न्यायालय ने एक महिला से 12 साल तक कथित तौर पर बलात्कार करने के मामले में एक व्यक्ति को आरोप मुक्त करने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में शिकायतकर्ताओं को निष्पक्ष सुनवायी मिलनी चाहिए, वहीं आरोपियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली की जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

उच्च न्यायालय ने कहा कि बलात्कार और यौन हिंसा के मामलों में, यौन संबंध की सहमति की परिभाषा की अवधारणा का अत्यधिक महत्व है और 'सहमति' के मुद्दे पर यौन हमले के अपराधों के विश्लेषण के लिए बारीकी से पड़ताल की जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने आदेश में कहा, ‘‘अदालतों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने के अदालत के महत्वपूर्ण प्रयास में शिकायतकर्ता के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार और आरोपियों के दुर्भावनापूर्ण मुकदमे से बचाव के अधिकारों का ध्यान रखा जाए।’’

उच्च न्यायालय का यह फैसला भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के तहत निचली अदालत के जून 2018 के आदेश को बरकरार रखते हुए आया।

महिला ने आरोप लगाया था कि 2005 से 2017 तक एक व्यक्ति ने उसके साथ बार-बार बलात्कार किया, वहीं उसके द्वारा प्राथमिकी 2017 में यहां सराय रोहिल्ला पुलिस थाने में दर्ज कराई गई थी।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘बलात्कार, यौन हिंसा और यौन उत्पीड़न कानूनों को प्रभावी रूप से लागू करने के मामलों में, यौन सहमति की परिभाषा की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि ऐसी शिकायतों और मामलों में बलात्कार और सहमति से यौन संबंध के बीच नाजुक संतुलन निष्पक्ष रूप से सामने आ सके। इस प्रकार, सहमति का मुद्दा यौन उत्पीड़न अपराधों के विश्लेषण के लिए बारीकी से पड़ताल के योग्य है।’’

अभियोजन पक्ष के अनुसार, महिला की आरोपी से 2005 में एक ट्रेन में मुलाकात हुई और दोस्ती हो गई और वह उसके घर आने-जाने लगा। नवंबर 2005 में उस व्यक्ति ने उसे जूस पिलाया, जिसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई और होश आने पर उसे अहसास हुआ कि उसने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं।

अभियोजन पक्ष के अनुसार इसके बाद, उसने उसे बदनाम करने की धमकी दी और उसे कुछ अश्लील तस्वीरें दिखाईं और 2017 तक शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।

महिला ने 2017 में अपने पति को कथित घटनाओं के बारे में जानकारी दी और पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करायी। व्यक्ति का विवाह अन्य महिला से, जबकि उक्त महिला का विवाह अन्य व्यक्ति से हुआ था।

एक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए अपने बयान में महिला ने कहा कि उसने दो बच्चों को जन्म दिया, जिसका पिता आरोपी था और डीएनए जांच में भी इसकी पुष्टि हुई।

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